211) Organisatim a) Batakmo Samaj Raja b) Arya Samaj Swo Prathana Samaj - Dr Aln Satyashodhak Samaj. Me P d)
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सत्यशोधक समाज
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सत्यशोधक समाज (अर्थ : सत्य अर्थात सच की खोज करने वाला समाज) 24 सितम्बर सन् 1873 में ज्योतिबा फुले द्वारा स्थापित एक पन्थ है। यह एक छोटे से समूह के रूप में शुरू हुआ और इसका उद्देश्य शूद्र एवं अस्पृश्य जाति के लोगों को विमुक्त करना था। इनकी विचार "गुलामगिरी, सार्वजनिक सत्यधर्म " में निहित है । डॉ. भीमराव अंबेडकर जी इनके विचारो से बहुत प्रभावित थे ।
सत्यशोधक समाज के संस्थापक ज्योतिबा फुले
सत्य शोधक समाज के प्रमुख उद्देश्य : शूद्रों-अतिशूद्रों को पुजारी, पुरोहित, सूदखोर आदि की सामाजिक-सांस्कृतिक दासता से मुक्ति दिलाना, धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यों में पुरोहितों की अनिवार्यता को खत्म करना, शूद्रों-अतिशूद्रों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, ताकि वे उन धर्मग्रंथों को स्वयं पढ़-समझ सकें, जिन्हें उनके शोषण के लिए ही रचा गया है, सामूहिक हितों की प्राप्ति के लिए उनमें एकजुटता का भाव पैदा करना, धार्मिक एवं जाति-आधारित उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना, पढ़े-लिखे शूद्रातिशूद्र युवाओं के लिए प्रशासनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना आदि. कुल मिलाकर ये सामाजिक परिवर्तन के घोषणापत्र को लागू करने का कार्यक्रम था।
एक प्रसंग है जिसने ज्योतिबा फूले जी को इसके लिये प्रेरित किया । अपने एक ब्राह्मण मित्र कि शादी में जातिगत भेदभाव एवम वैमनस्यता के कारण वे बुरी तरह अपमानित हुए और उन्हे धक्के देकर शादी के मंडप से निकाल दिया गया । घर आ कर उन्होंने अपने पिताजी से इसका कारण पूछा । पिताजी ने बताया कि सदियों से यही सामाजिक वयवस्था है और हमे उनकी बराबरी नहीं करनी चाहिए। ब्रहमण भूदेव (धरती के देवता) है; ऊॅची जाति के लोग हैं और हम लोग नीची जाति के लोग हैं अतः हम उनकी बराबरी नहीं कर सकते । फूले जी ने अपने पिताजी से बहस की और कहा, "मै उन ब्राहमणो से ज्यादा साफ़-सुथरा था, मेरे कपड़े अच्छे थे, ज्यादा पढ़ा-लिखा व होशियार हूँ । हम उनसे ज्यादा अमीर भी है फिर मैं उनसे नीच कैसे हो गया?" पिताजी नाराज़ होकर बोले,"यें मुझे नहीं पता परन्तु यह सदियों से होता आ रहा है' हमारे सभी धर्मग्रंथों एवम शास्त्रो मे यही लिखा है और हमें भी यही मानना पड़ेगा क्योकि यही परम्परा व परम सत्य है।" फूलेजी सोचने लगे। धर्म तो जीवन का आधार है फिर भी धर्म को बताने वाली पुस्तको' धर्मग्रंथों' शास्त्रो में ऐसा क्यों लिखा है? अगर सभी जीवों को भगवान ने बनाई है तो मनुष्य-मनुष्य मे विभेद क्यों हैं? कोई ऊँची जाति, कोई नीची जाति का कैसे है? अगर ये हमारे धर्मग्रंथों में लिखा है और जिसके कारण समाज में इतनी विषमता व छूआछूत हैं तो यह परम् सत्य कैसे हुआ?? यह असत्य हैं । यदि यह असत्य हैं तो मुझे सत्य की खोज करनी पड़ेगी और समाज को बताना भी पड़ेगा । अतः उन्होंने इस काम के लिए एक संगठन बनाया और उसका नाम रखा ""सत्यशोधक समाज""।
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