Accountancy, asked by sdccxzzxz, 1 year ago


22. A company was registered with nominal capital of 50,00,000 in equity shares of
* 100 each. 10,000 of these shares were issued as fully to the vendor in consideration
of purchase of a plant and 20,000 shares were issued to the public at a premium of
* 10 per share, payable as:
* 30 on application
335 on allotment (including ? 5 premium)
725 on First call (including * 5 premium)
The balance on Second and final call
Applicants were received for 35,000 shares and Allotment was made as follows:
List
I. Applications for 5,000 shares were allotted in full.
List
II. Applications for 15,000 shares were allotted 5,000 shares on pro-rata
basis.
List III. Applications for 15,000 shares were allotted 10,000 shares on pro-rata
basis..

next part on picture

please solve this fast

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Answers

Answered by AnmolRaii
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Nominal or Authorized or Registered Capital

Section 2(8) of the Companies Act, 2013, defines Nominal Capital as the amount of capital that the Memorandum of the company authorizes as the share capital of the company. Hence, it is the registered amount authorized that can be raised by issuing shares.

simple words, the total contributions made by people to the common stock of the company is the capital of the company. Further, a share is the proportion of the capital to which each member has entitlement. Remember, a share is not an amount of money. It is an interest including different rights in the contract.

In this article, we will look at five ways in which the term capital is used in Company Law: nominal capital, issued capital, subscribed capital, called up capital and paid up capital.

Nominal or Authorized or Registered Capital

Section 2(8) of the Companies Act, 2013, defines Nominal Capital as the amount of capital that the Memorandum of the company authorizes as the share capital of the company. Hence, it is the registered amount authorized that can be raised by issuing shares.

The company also pays stamp duty in this amount. Typically, you can calculate nominal capital by taking into consideration the working and reserve capital needs of the company.

Issued Capital

Issued capital is a part of the Authorized capital, offered by the company for the subscription. This includes the allotment of shares. Section 2(50) of the Companies Act, 2013, offers this definition. Further, it is mandatory for companies to disclose its issued capital in the balance sheet (Schedule III of the Act).

Subscribed Capital

Section 2(86) of the Companies Act, 2013, defines Subscribed capital as the part of the capital being subscribed by the members of the company. It is the number of shares that the public takes.

Further, if the company states Authorized Capital in any communication like notice, advertisement, official/business letter, etc., then it has to also specify subscribed and paid up capital in equally conspicuous characters.

Also, Section 60 of the Act specifies that defaulters in this regard, the company and all officers who default, will be fined around Rs. 10,000 and Rs. 5,000 respectively.

Answered by ʙʀᴀɪɴʟʏᴡɪᴛᴄh
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Answer:

आउटलुक : रेटिग के साथ जुड़ा हुआ यह शब्द भी भावी संभावनाओं को दर्शाता है। कंपनी/संस्था या देश का भविष्य क्या है अथवा इसकी क्या संभावना है जैसे सवाल पूछते समय आउटलुक शब्द का उपयोग किया जाता है। आउटलुक के आधार पर ही निवेश करने का निर्णय कम्पी को लिया जाता है क्योंकि आउटलुक पॉजिटिव, निगेटिव या फिर स्टेबल (स्थिर) हो सकता है। निवेशकों के लिए यह हितकारक है कि वे निवेश करते समय कंपनी, संस्था या देश के आउटलुक पर ध्यान दें।

ऑर्डर बुक : कंपनी की ऑर्डर बुक में कितने ऑर्डर बकाया पड़े हैं इसकी जानकारी के आधार पर कंपनी के कार्य परिणाम, भविष्य एवं स्थिरता का अनुमान लगाया जा सकता है। कंपनी के पास ऑर्डर ही न हों या भरपूर ऑर्डर न हों तो ऐसी स्थिति कंपनी के लिए अच्छी नहीं माना जाती, जबकि निरंतर ऑर्डर मिलने वाली तथा ऑर्डर बुक में भरपूर ऑर्डर रखने वाली कंपनी की स्थिति सुदृढ़ मानी जाती है। ऑर्डर बुक भरपूर होने का अर्थ यह है कि कंपनी के पास भरपूर काम है तथा भविष्य में उसकी आय निरंतर बनी रहेगी।

आर्बिट्रेज : एक शेयर बाजार से निर्धारित शेयरों की कम भाव पर खरीदारीी करके उसे दूसरे बाजार में ऊंचे भाव पर बेच देने की प्रवृत्ति को आर्बिट्रेज कहा जाता है। उदाहरण स्वरूप बीएसई पर एबीसी कंपनी के शेयर 145.20 रू. के भाव पर खरीद कर उसी समय एनएसई पर 145.30 रू. पर बेच देने की प्रक्रिया को आर्बिट्रेज कहते हैं। इस प्रकार आपको 10 पैसे का अंतर मिलता है। ये सौदे एक ही समय किये जाते हैं तथा इसमें बड़ी संख्या में सौदे किये जाते हैं। पुराने समय में एक ही समय पर एक ही स्क्रिप के अलग-अलग भाव हुआ करते थे परंतु अब ऑन लाइन ट्रेडिंग सुविधा होने से इसकी मात्रा काफी घट गयी है। अब इस प्रकार के सौदों में भाव का अंतर काफी कम होता है, परंतु भारी मात्रा में सौदे होने से इनमें भरपूर लाभ अर्जित होता है। इस प्रकार का कारोबार करने वालों को आर्बिट्रेजर कहा जाता है। कई बार एक ही कमोडिटी, करेंसी या सिक्युरिटीज के तीन चार एक्सचेंज पर अलग-अलग भाव अंतर पर सौदे होते हैं, जिसमें एक बाजार से नीचे भाव में खरीद कर दूसरे बाजार में ऊंचे भाव पर बेचा जाता है। यहां महत्वपूर्ण यह है कि ये सौदे दोनों एक्सचेंजों पर एक ही समय पर किये जाते हैं। ब्रोकर इस काम के लिए विशेष स्टॉफ रखते हैं, जो बीएसई और एनएसई दोनों पर भरपूर मात्रा में सौदे करते रहते हैं।

आर्बिट्रेशन : इस शब्द का अर्थ आर्बिट्रेज से काफी अलग है। आर्बिट्रेशन का अर्थ है विवादों का निपटान। जब ब्रोकर और ब्रोकर के बीच या ब्रोकर और ग्राहक के बीच कोई विवाद हो जाता है तो इस प्रकार के विवाद को निपटाने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति की जाती है, जिसे आर्बिट्रेटर कहा जाता है और उसके निपटान की प्रक्रिया को आर्बिट्रेशन प्रोसेस कहा जाता है। शेयर बाजार में ऐसे विवादों के निपटान के लिए एक खास विभाग एक्सचेंज के नियमों एवं उपनियमों के तहत कार्य करता है। इस प्रकार के मामलों में आर्बिट्रेटर की नियुक्ति एक्सचेंज के नियमों के अनुसार होती है और उसके द्वारा दिये गये निर्णय ब्रोकर और ग्राहकों पर लागू होते हैं। इस प्रक्रिया में आर्बिट्रेटर दोनों पक्षों को सुनने के बाद अपना निर्णय देता है।

ऑक्शन (नीलाम) : शेयर बाजार में जब कोई निवेशक शेयर बेच देता है, परंतु समय पर उसकी डिलिवरी देने में विफल हो जाता है तो एक्सचेंज की कार्य पद्धति के तहत निवेशक के शेयर डिलिवरी दायित्व को उतारने के लिए उतने ही शेयरों का आवश्यक रूप से ऑक्शन (नीलाम) किया जाता है। इस प्रक्रिया में ऑक्शन के जरिए उतनी संख्या के शेयर बाजार के वर्तमान भाव पर ब्रोकर के द्वारा खरीदे जाते हैं और इसके भाव अंतर का बोझा निवेशक से वसूला जाता है। इसका कारण यह है कि निवेशक ने अपने पास शेयर हुए बिना भी उनको बेच दिया था। हमने इसके पहले शार्ट सेल्स (खोटी बिक्री) की चर्चा की थी। उसमें भी शार्ट सेल्स करने वाले निवेशक को बाजार भाव पर शेयर खरीद कर डिलिवरी देनी होती है, परंतु जब कोई निवेशक स्वेच्छा से ऐसा नहीं करता है तो बाजार के नियमों के तहत स्टॉक एक्सचेंज द्वारा आवश्यक रूप से नीलामी के मार्फत उस सौदे का निपटान किया जाता है।

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