22. दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश
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Explan पल्लव वंश
राजधानी: काँचीपुरम
भाषा: तमिल, तेलगु, संस्कृत एंव प्रकृत
धर्म: हिंदू
शासन: राजतंत्र
पल्लव वंश दक्षिण भारत का एक राजवंश था जिसने तमिल और तेलुगु क्षेत्र पर शासन किया। इस वंश की स्थापना सिंह विष्णु ने की थी। पल्लव काल को हिंदू धर्म की उन्नति का काल भी कहा जाता हैैं। पल्लव काल मेें शैैैैव धर्म का प्रचलन अधिक था, लेकिन बौद्ध और जैन धर्मों को भी राज्य का संरक्षण मिला था। इस काल में दक्षिण भारत मेंं शक्ति संप्रदाय प्रगतिशील था।
काँची का कैलाशनाथ मंदिर और महाबलिपुरम् में रथ मंदिर पल्लव वंश की ही अनमोल देन हैं। पल्लव शासन में राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी होता और शासन कार्यों के परामर्श के लिए उसकी एक मंत्रिपरिषद् होती थी। सेना का अध्यक्ष सेनापति होता। पल्लवों के पास थल और जल दो प्रकार की सेनाएं थी। पल्लवों का संपूर्ण साम्राज्य मंडलों (प्रांतों) में विभाजित रहते और इस प्रांतों के शासक राजकुमार या अभिजातीय कुल के लोग होते थे।
➢ पल्लव वंश के बारे महत्वपूर्ण बातें।
पल्लव वंश का संस्थापक सिंहविष्णु (575- 600) था।
इसकी राजधानी थी - काँची। (तमिलनाडु में काँचीपुरम) ।
सिंहविष्णु वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
किरातार्जुनीयम के लेखक भारवि सिंहविष्णु के दरबार में रहते थे।
पल्लव वंश के प्रमुख शासक हुए - क्रमश:
महेंद्र वर्मन I (600- 630 ई0),
नरसिंह वर्मन I (630- 668 ई0),
महेंद्र वर्मन II (668- 670 ई0)
परमेश्वर वर्मन I (670- 680 ई0)
नरसिंहवर्मन II (680- 720 ई0),
नंदीवर्मन I (731- 795 ई0) ।
पल्लव वंश का अंतिम शासक अपराजित (879- 897 ई0) हुआ।
मतविलास प्रहसन की रचना महेंद्र वर्मन I ने की थी।
महाबलिपुरम् के प्रसिद्ध रथ मदिंर (पंच रथ मदिंर) का निर्माण नरसिंह वर्मन I के द्वारा करवाया गया था। रथ मदिंरों में सबसे छोटा द्रोपदी रथ है जिसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता है।
वातपीकोंड की उपाधि नरसिंह वर्मन I ने धारण की थी।
काँची के कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण नरसिंहवर्मन II ने करवाया था। इसे राजसिध्देश्वर मंदिर भी कहा जाता है। (महाबलिपुरम् में शोर मंदिर)
दशकुमारचरित के लेखक दण्डी नरसिंहवर्मन II के दरबार में रहते थे।
काँची के मुक्तेश्वर मदिंर और वैकुण्ठ पेरूमाल मदिंर का निर्माण नंदीवर्मन II ने कराया।
प्रसिद्ध वैष्णव संत तिरुमड्ई अलवार नंदीवर्मन II के समकालीन थे।
नोट: दक्षिण भारत के प्रमुख राजवंश पल्लव वंश, राष्ट्रकूट वंश, चोल वंश, चालुक्य वंश (कल्याणी), चालुक्य वंश (वातापी), चालुक्य वंश (वंगी) आदि को कहा जाता हैं।
राष्ट्रकूट वंश
राजधानी: मान्यखेत
भाषा: कन्नड़, संस्कृत
धर्म: हिंदू, बौद्ध, और जैन
शासन: राजतंत्र
➢ राष्ट्रकूट वंश के बारे मेंं महत्वपूर्ण बातें:
राष्ट्रकूट राजवंश का संस्थापक दंतिदुर्ग (752 ई0) था।
इसकी राजधानी मनकिर या मान्यखेत (वर्तमान मालखेड़, शोलापुर के निकट) थी।
राष्ट्रकूट वंश के प्रमुख शासक थे क्रमश: कृष्ण प्रथम, ध्रुव, गोविंद तृतीय, अमोघवर्ष, कृष्ण II, इन्द्र-III, और कृष्ण III ।
ऐलोरा के प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण कृष्ण प्रथम ने करवाया था।
ध्रुव राष्ट्रकूट वंश का पहला शासक जो कन्नौज पर अधिकार करने हेतु त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया और प्रतिहार नरेश वत्सराज एवं पाल नरेश धर्मपाल को पराजित किया।
ध्रुव को 'धारावर्ष' भी कहा जाता था।
गोविंद तृतीय ने त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग भाग लेकर चक्रायुद्ध और उसके संरक्षक धर्मपाल तथा प्रतिहार वंश के शासक नागभट्ट-II को पराजित किया।
पल्लव, पाण्डय, और गंग शासकों के संघ को गोविंद तृतीय ने नष्ट किया।
अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था। इसने कन्नड़ में कविराजमार्ग की रचना की।
गणितसार संग्रह के लेखक महावीराचार्य और अमोघवृत्ति के लेखक सक्तायना अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे।
अमोघवर्ष ने तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया।
इन्द्र-III के शासनकाल में अरब निवासी अलमसूदी भारत आया; इसने तत्कालीन राष्ट्रकूट शासकों को भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक कहा।
राष्ट्रकूट वंश का अंतिम महान शासक कृष्ण III था। इसी के दरबार में कन्नड़ भाषा के कवि पोन्न रहते थे जिन्होने शांति पुराण की रचना की।
कल्याणी के चालुक्य तैपक-II ने 973 ई0 में कर्क को हराकर राष्ट्रकूट राज्य पर अपना अधिकार कर लिया और कल्याणी के चालुक्य वंश की नींव डाली।
प्रसिध्द ऐलोरा और ऐलिफेंटा (महाराष्ट्र) गुफामंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय ही हुआ था।
ऐलोरा में 34 शैलकृत गुफाएँ हैं। इसमें 1 से 12 तक बौध्दों, 13 से 29 तक हिंदुओं और 30 से 34 तक जैनों की गुफाएँ हैं।
राष्ट्रकूट शैव, वैष्णव, शाक्त सम्प्रदायों के साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे।
राष्ट्रकूटों ने अपने राज्यों में मुस्लमान व्यापारियों को बसने तथा इस्लाम का प्रचार की अनुमति दी थी।ation: