24.ढोलक बोलकबमीि लगत हैं?
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ग्राम पालनार में चल रहे दो दिवसीय ढोल नृत्य प्रतियोगिता में पालनार की टीम विजयी रही। टीम को इनाम में 30 हजार रुपए का चेक व बकरा दिया गया। उपविजेता रही माड़पाल की टीम को बीस हजार रुपए का चेक व मुर्गा दिया गया। तीसरे स्थान पर किरंदुल की टीम रही जिसे दस हजार रुपए व अंडे दिए गए। इस मौके पर पहुंचे कलेक्टर सौरभ कुमार ने गौर सिंग लगाकर नृत्य किया वहीं जिला पंचायत अध्यक्ष कमला नाग ने गुज्जिड़ बजाकर उनका साथ दिया।
कलेक्टर ने कहा कि बस्तर की आदिवासी संस्कृति हजारों साल पुरानी है। यहां के लोग ख़ुशी के मौके पर ढोल की धुन पर थिरकते हैं, लेकिन आधुनिक संगीत पद्धति ने बस्तर की ढोल नृत्य संस्कृति पर ख़ासा असर डाला है। युवा वर्ग इससे दूर होते जा रहे हैं। इस कला को सहेजने के लिए इस प्रकार के आयोजन जरूरी हैं। इस दौरान पूर्व विधायक भीमा राम मंडावी ने कहा कि बस्तर की संस्कृति में ढोल नृत्य की अहम भूमिका रही है। देश दुनिया में बस्तर की पहचान भी इस लोक नृत्य से होती है। उन्होंने कहा कि खोजी प्रतिभा को सहेजने के उद्देश्य से कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इस दौरान गुमरगुंडा आश्रम के स्वामी विशुद्धानंद, मांझी लक्ष्मीनाथ, अभिलाष तिवारी, सत्यजीत चौहान, दीपक बाजपेई, महावीर माहेश्वरी, शंकर कुंजाम मौजूद थे।
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