-24 फर्म के पूर्ति वक्र के निर्धारक तत्वों का वर्णन कीजिये-
अथवा
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पूर्ति शब्द का अर्थ किसी वस्तु की उस मात्रा से लगाया जाता है, जिसे को विक्रेता ‘एक निश्चित समय’ तथा ‘एक निश्चित कीमत’ पर बाजार में बेचने के लिए तैयार रहते हैं। उदाहरण के लिए, यदि यह कहा जाये कि बाजार में गेहू की पूर्ति 1,000 क्विटंल की है, तो यह कथन उचित नहीं है, क्योकि इसमें गेहू की कीमत एवं समय का उल्लेख नहीं किया गया हैं किन्तु यदि इसी बात को इस प्रकार कहा जाये कि आज बाजार में 250 रू. प्रति क्विंटल की कीमत पर 1,000 क्विंटल गेहू की पूर्ति हैं तो यह कथन ठीक है। अत: स्पष्ट है कि पूर्ति के लिए निश्चित समय तथा एक निश्चित मूल्य को बताना आवश्यक है। प्रो. बेन्हम के शब्दों में- ”पूर्ति का आशय वस्तु की उस मात्रा से है जिसे प्रति इका समय में बेचने के लिए प्रस्ततु किया जाता है। “
पूर्ति तालिका अथवा पूर्ति अनुसूची
बाजार में एक निश्चित समय में विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की विभिन्न मात्राएँ बेचने के लिए उपलब्ध करायी जाती है। जब विभिन्न कीमतों तथा उन कीमतों पर बेचने के लिए उपलब्ध मात्राओं को एक तालिका के रूप में व्यक्त किया जाता है, तो उसे ‘पूर्ति की तालिका’ कहते है। पूर्ति तालिका, कीमत एवं बेची जाने वाली मात्रा में कायार्त्मक संबध बतलाती है। माग तालिका की तरह पूर्ति तालिका भी दो प्रकार की होती है। (1) व्यक्तिगत पूर्ति की तालिका। (2) बाजार पूर्ति की तालिका।
व्यक्तिगत पूर्ति की तालिका-
जब किसी निश्चित समय पर किसी बाजार में एक विक्रेता के द्वारा किसी वस्तु की भिन्न-भिन्न कीमतों में बेचा जाता है, तो उसे हम व्यक्तिगत पूर्ति तालिका कह सकते है। इस प्रकार व्यक्तिगत पूर्ति तालिका किसी विक्रेता के अनमुानित कीमतों और उस कीमतों पर पूर्ति की जाने वाली मात्राओं के आधार पर बनायी जाती है।
बाजार पूर्ति की तालिका-
एक बाजार में बहतु से विक्रेता होते हैं जो विभिन्न कीमतों पर वस्तु को बेचने के लिए तैयार रहते है यदि इन सब विक्रेताओं की पूर्ति को जोड़ दिया जाये तो एक बाजार की पूर्ति तालिका बन जायेगी।
पूर्ति वक्र या पूर्ति रेखा
जब पूर्ति तालिका को रेखाचित्र द्वारा व्यक्त किया जाता है, तो उसे पूर्ति -चक्र कहते है। इस प्रकार पूर्ति वक्र किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर उसकी विक्रय हेतु उपलब्ध मात्राओं के बीच पाये जाने वाले ‘सम्बन्ध’ को स्पष्ट करता है। पूर्ति तालिका की तरह, पूर्ति वक्र भी दो प्रकार का होता है- (i) व्यक्तिगत पूर्ति वक्र तथा (ii) बाजार पूर्ति वक्र।
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