25.5.20 Buniyaad Activity पिछले दो-तीन सालों से कोमल देख रही है कि चाचा जी हमेशा गेहूं या बाजरा काटने के बाद फलीदार फसलें ही लगाते हैं। खेत में दूसरी फसलें भी लगाई जा सकती थी, मगर वे ऐसा कभी नहीं करते। घर के लोगों से चर्चा करके या अपने किसान रिश्तेदार से फोन पर बात करके कोमल की इस समस्या का पता करें और बताएं कोमल की समस्या यह है कि उसके चाचा जी हमेशा गेहूं या बाजरा काटने के बाद फलीदार फसलें ही क्यों लगाते हैं?
Answers
गेहूँ और बाजरे के बाद हमेशा फलीदार फसल इसलिए लगाती हैं, ताकि मिट्टी की उर्वरता बरकरार रह सके।
जब गेहूं और बाजरे जैसी अनाज की फसलें उगाई जाती हैं तो यह फसलें मिट्टी में उपस्थित नाइट्रोजन लवणों का उपयोग कर लेती हैं और इन फसलों की कटाई के बाद यदि तुरंत दूसरी गैर फलीदार फसल लगाई जाए तो मिट्टी में नाइट्रोजन लवणों की मात्रा बहुत कम हो जाती है इससे मिट्टी की उर्वरता बेहद कम हो सकती है, क्योंकि मिट्टी की उर्वरता के उसमे नाइट्रोजन लवणों की पर्याप्त मात्रा होनी आवश्यक है।
अतः गेहूं और बाजरा आदि जैसी गैर-फलीदार फसलों की कटाई के बाद फलीदार फसलें उगाई जाती हैं, क्योंकि फलीदार फसलों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को संतुलित करने की क्षमता होती है। ये फसलें अपनी जड़ों में मौजूद कुछ जीवाणुओं की मदद से नाइट्रोजन यौगिक बनाती रहती हैं और यह यौगिक मिट्टी में आ जाते हैं, और मिट्टी की उर्वरता बरकरार रहती है। इस तरह फलीदार फसल को लगाने से मिट्टी की उर्वरता कम नही होती है और उसकी उर्वरता अगली फसल के लिये बरकरार रहती है। इसी कारण गेहूं बाजरा जैसी फसलों के बाद फलीदार फसलें लगाई जाती हैं ताकि मिट्टी की उर्वरता बरकरार रह सके।