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संत कबीर के विचारों और शिक्षाओ का भारतीय समाज,
आर्थिक जीवन, सभी पमो तथा भाषा पर पड़े प्रभावी
व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
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संत कबीर १५ वीं. शताब्दी के अंत से १६ वीं. शताब्दी के आरंभ तक की समयावधि में एक जुलाहा होने के साथ साथ एक प्रसिद्ध संत कवि थे। यह भारत में भक्ति आंदोलन का काल था। राजनैतिक दृष्टि से इस काल अवधि में इस्लामी शासक सम्पूर्ण भारत में अपना आधिपत्य स्थापित करने का प्रयत्न कर रहे थे। वे हिंदुओं को नाना प्रकार से प्रताड़ित कर रहे थे। उस समय सभी हिन्दूओं ने भक्ति मार्ग का आसरा लिया । उन्होंने देवी-देवताओं की शरण ली, उनकी स्तुति गाने लगे तथा उनमें आसरा ढूंढने लगे।कबीर हिन्दू थे अथवा मुसलमान, इस विवाद का समाधान कदाचित हमें कभी प्राप्त नहीं हो पाएगा। नीरू व नीमा, इस मुसलमान जोड़े ने कबीर का पालन-पोषण किया तथा स्वामी रामानन्द उनके गुरु थे। नीरू एवं नीमा की समाधियाँ बनारस के कबीर मठ में स्थित हैं। कबीर की रचनाएं विभिन्न भारतीय शास्त्रों में उनके ज्ञान एवं पकड़ का प्रमाण हैं। उनकी रचनाओं में वैदिक साहित्य, शरीर-रचना, प्राणी व वनस्पति शास्त्र, दर्शन-शास्त्र तथा बुनाई सम्मिलित है।
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संत कबीर निर्गुण मत के अनुयायी कवि है। भक्ति काल में निर्गुण भक्तों में कबीर को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। भारतभूमि जो अनेक रत्नों की खान रही है उन्हीं महान् रत्नों में से एक थे संत कबीर। कबीर का अरबी भाषा में अर्थ है - महान्। वे भक्त और कवि बाद में थे, पहले समाज सुधारक थे। वे सिकन्दर लोदी के समकालीन थे। कबीर की भाषा सधुक्कड़ी थी तथा उसी भाषा में कबीर ने समाज में व्याप्त अनेक रूढ़ियों का खुलकर विरोध किया है। हिन्दी साहित्य में कबीर के योगदान को नकारा नहीं जा सकता। रामचन्द्र शुक्ल ने भी उनकी प्रतिभा मानते हुए लिखा है “ प्रतिभा उनमें बड़ी प्रखर थी। ”