Hindi, asked by rv80573, 2 months ago

25. शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली कथन किसका है
(A) दण्डी
(B) रुद्रट ने
(C) पंडितराज जगन्नाथ
(D) राजशेखर​

Answers

Answered by vruddhibakal23
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Answer:

Explanati

दण्डी

Answered by krishna210398
0

Answer:

पंडितराज जगन्नाथ

Explanation:

आचार्य दण्डी की चर्चा इस ब्लॉग पर आप पढ़ चुके हैं। यदि नहीं पढ़ा तो (यहां) क्लिक कीजिए। आचार्य दण्डी का मत है कि

“शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवछिन्ना पदावली”।

शब्दों के समूह से पदावली बनती है। दण्डी के अनुसार शब्दों का वह समूह जो सरसता से भरा हो और कवि-प्रतिभा से युक्त सुंदर पदावली से अलग किया हो, को काव्य-शरीर कहा जा सकता है। उन्होंने काव्य-शरीर पर विचार किया। उनके अनुसार जिन पदों में वाक्यत्व की योग्यता हो उन्हें काव्य कहा जा सकता है। साथ ही पदावली ईष्टार्थ युक्त होना चाहिए। इसमें योग्यता के अलावा आकांक्षा और आसक्ति जैसी विशेषतएं भी होनी चाहिए। तभी काव्य के अर्थ में चमत्कार की सृष्टि होगी। दण्डी के इस कथन में अलंकार के साथ रस की अपेक्शा भी है। किन्तु उनका रस भावात्मक आनंद के लिए न होकर अलंकार के चमत्कार से उत्पन्न आनंद के लिए है। दण्डी के अनुसार सभी अलंकारों का उद्देश्य रस की सृष्टि करना है। वे काव्यानंद के लिए शब्दालंकार-अर्थालंकार के साथ रसवद अलंकार को भी शामिल करते हैं। उनके अनुसार शब्द-अर्थ-रस-सौंदर्य के मेल से बनी विशिष्ट पदावली ही काव्य है।

शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली कथन किसका है

(A) दण्डी

(B) रुद्रट ने

(C) पंडितराज जगन्नाथ

(D) राजशेखर​

https://brainly.in/question/38126280?msp_srt_exp=4

शरीरं तावदिष्टार्थ व्यवच्छिन्ना पदावली कथन किसका है

https://brainly.in/question/52214037?msp_srt_exp=4

#SPJ3

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