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suktiyan in sanskrit language with hindi meanings
Answers
1.) भोजनस्यादरो रसः ।
भोजन का रस “आदर” है ।
2.)लोभमूलानि पापानि ।
सभी पाप का मूल लोभ है ।
3.) मौनिनः कलहो नास्ति ।
मौनी मानव का किसी से भी कलह नहीं होता ।
4.) मौनं सर्वार्थसाधनम् ।
मौन यह सर्व कार्य का साधक है ।
5.)ऋणकर्ता पिता शत्रुः ।
ऋण करनेवाला पिता शत्रु है
6.)कुरूपता शीलयुता विराजते ।
कुरुप व्यक्ति भी शीलवान हो तो शोभारुप बनती है
7.)महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ।
बडे लोग स्वभाव से हि मितभाषी होते हैं ।
8.)कायः कस्य न वल्लभः ।
अपना शरीर किसको प्रिय नहीं है ?
9.) लुब्धानां याचको रिपुः ।
लोभी मानव को याचक शत्रु जैसा लगता है ।
10.) स्वभावो दुरतिक्रमः ।
स्वभाव बदलना मुश्किल है ।
11.)अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता ।
बलवान के साथ विरोध करनेका परिणाम दुःखदायी होता है ।
12.)भार्या मित्रं गृहेषु च ।
गृहस्थ के लिए उसकी पत्नी उसका मित्र है ।
13.)कुलं शीलेन रक्ष्यते ।
शील से कुल की रक्षा होती है
14.)तद् रूपं यत्र गुणाः ।
जिस रुप में गुण है वही
15.) क्लिश्यन्ते लोभमोहिताः ।
लोभ की वजह से मोहित हुए हैं वे दुःखी होते हैं ।
16.)वाणिज्ये वसते लक्ष्मीः ।
वाणिज्य में लक्ष्मी निवास करती है ।
17.)राजा कालस्य कारणम् ।
राजा काल का कारण है ।
18.)सत्यानृतं तु वाणिज्यम् ।
सच और जूठ एसे दो प्रकार के वाणिज्य हैं ।
19.)लोभः प्रज्ञानमाहन्ति ।
लोभ विवेक का नाश करता है ।
20)अभ्यावहति कल्याणं विविधं वाक् सुभाषिता ।
अच्छी तरह बोली गई वाणी अलग अलग प्रकार से मानव का कल्याण करती है ।
21.)रिक्तः सर्वो भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय ।
चीज खाली होने से हल्की बन जाती है; गौरव तो पूर्णता से हि मलता है ।
22.)भिन्नरूचि र्हि लोकः ।
मानव अलग अलग रूचि के होते हैं ।
23.)वाण्येका समलंकरोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते ।
संस्कृत अर्थात् संस्कारयुक्त वाणी हि मानव को सुशोभित करती है ।
24.)यदभावि न तदभावी भावि चेन्न तदन्यथा ।
जो नहीं होना है वो नहीं होगा, जो होना है उसे कोई टाल नहीं सकता
25.)वीरभोग्या वसुन्धरा ।
पृथ्वी का उपभोग वीर पुरुष हि कर सकते है ।
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