250 words essay on M. S. Subbulakshmi in hindi
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एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी
जन्म16 सितम्बर 1916
मदुरई, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारतमृत्युदिसम्बर 11, 2004 (उम्र 88)
चेन्नई, तमिल नाडु, भारतजीवनसाथीकल्कि सदाशिवम (१९४०-मृत्यु)
एम॰ एस॰ सुब्बुलक्ष्मी
श्रीमती मदुरै षण्मुखवडिवु सुब्बुलक्ष्मी (16 सितंबर, 1916-2004) कर्णाटक संगीत की मशहूर संगीतकार थीं। आप शास्तीय संगीत की दुनिया में एम. एस. अक्षरों से जानी जाती थी।
जीवनसंपादित करें
श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी का जन्म १६ सितंबर [[१९१६] को तमिलनाडु के मदुरै शहर में हुआ। आप ने छोटी आयु से संगीत का शिक्षण आरंभ किया और दस साल की उम्र में ही अपना पहला डिस्क रिकॉर्ड किया। इसके बाद आपने शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्णाटक संगीत में, तथा पंडित नारायणराव व्यास सेहिंदुस्तानी संगीत में उच्च शिक्षा प्राप्त की। आपने सत्रह साल की आयु में चेन्नै ही विख्यात 'म्यूज़िक अकाडमी' में संगीत कार्यक्रम पेश किया। इसके बाद आपने मलयालम से लेकर पंजाबी तक भारत की अनेक भाषाओं में गीत रिकॉर्ड किये।
अभिनयसंपादित करें
श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी ने कई फ़िल्मों में भी अभिनय किया। इनमें सबसे यादगार है १९४५ के मीरा फ़िल्म में आपकी मुख्य भूमिका। यह फ़िल्म तमिल तथा हिन्दी में बनाई गई थी और इसमें आपने कई प्रसिद्ध मीरा भजन गाए।
प्रशंसासंपादित करें
अनेक मशहूर संगीतकारों ने श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी की कला की तारीफ़ की है। लता मंगेशकर ने आपको 'तपस्विनी' कहा, उस्ताद बडे ग़ुलाम अली ख़ां ने आपको 'सुस्वरलक्ष्मी' पुकारा, तथा किशोरी आमोनकर ने आपको 'आठ्वां सुर' कहा, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है। भारत के कई माननीय नेता, जैसे महात्मा गांधी और पंडित नेहरु भी आपके संगीत के प्रशंसक थे। एक अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा कि अगर श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी 'हरि, तुम हरो जन की भीर' इस मीरा भजन को गाने के बजाय बोल भी दें, तब भी उनको वह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा। एम.एस.सुब्बालक्ष्मी को कला क्षेत्र में पद्म भूषण से १९५४ में सम्मानित किया गया।
संयुक्त राष्ट्र संघ मेंसंपादित करें
आप पहली भारतीय हैं जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ (en:United Nations) की सभा में संगीत कार्यक्रम प्रस्तुत किया, तथा आप पहली स्त्री हैं जिनको कर्णाटक संगीत का सर्वोत्तम पुरस्कार, संगीत कलानिधिप्राप्त हुआ। १९९८में आपको भारत का सर्वोत्तम नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न प्रदान किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ सुब्बुलक्ष्मी की जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में, एक डाक टिकट जारी करेगा[1]
जीवन लीला समापनसंपादित करें
श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी का देहांत २००४ में चेन्नैई में हुआ।
श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी का परिचय :-
श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी का जन्म 16 सितंबर 1916 को तमिलनाडु शहर में हुआ। उन्होने छोटी सी आयु से संगीत का शिक्षण आरंभ किया और दस साल की उम्र में ही अपना पहला डिस्क रिकॉर्ड किया। इसके बाद आपनी मा शेम्मंगुडी श्रीनिवास अय्यर से कर्णाटक संगीत में, तथा पंडित नारायणराव व्यास से हिंदुस्तानी संगीत में उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होने सत्रह साल की आयु में चेन्नई में विख्यात 'म्यूज़िक अकाडमी' में संगीत कार्यक्रम पेश किया। इसके बाद आपने मलयालम से लेकर पंजाबी तक भारत की अनेक भाषाओं में गीत रिकॉर्ड किये।
श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी ने कई फ़िल्मों में भी अभिनय किया। इनमें सबसे यादगार है 1945 के मीरा फ़िल्म में आपकी मुख्य भूमिका। यह फ़िल्म तमिल तथा हिन्दी में बनाई गई थी |
संगीतकारों द्वारा प्रशंसा :-
अनेक मशहूर संगीतकारों ने श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी की कला की तारीफ़ की है। लता मंगेशकर ने उन्हे 'तपस्विनी' कहा, उस्ताद बडे ग़ुलाम अली ख़ां ने आपको 'सुस्वरलक्ष्मी' पुकारा, तथा किशोरी आमोनकर ने आपको 'आठ्वां सुर' कहा, जो संगीत के सात सुरों से ऊंचा है। भारत के कई नेता, जैसे महात्मा गांधी और पंडित नेहरु भी उनके के प्रशंसक थे । एक अवसर पर महात्मा गांधी ने कहा कि अगर श्रीमती सुब्बुलक्ष्मी 'हरि, तुम हरो जन की भीर' इस मीरा भजन को गाने के बजाय बोल भी दें, तब भी उनको वह भजन किसी और के गाने से अधिक सुरीला लगेगा।
पुरस्कारों द्वारा स्म्मणित किया गया :-
एम.एस.सुब्बालक्ष्मी को कला क्षेत्र में पद्म भूषण से में सम्मानित किया गया। भारत रत्न से सम्मानित होने वाली पहली संगीतज्ञ थी |
- 1954 में पद्मभूषण
- 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार
- 1968 में संगीत कलानिधि
- 1974 में मैग्सेसे एवॉर्ड
- 1975 में पद्म-विभूषण
- 1988 में कालीदास सम्मान
- 1990 में इंदिरा गांधी एवॉर्ड