Math, asked by angelpatel4926, 2 months ago

27 Km/hr വേഗതയിൽ സഞ്ചരിക്കുന്ന ഒരു വാഹനം ഒരു മിനിട്ടിൽ എത്ര ദൂരം സഞ്ചരിക്കും

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7

Answer:

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले,

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |

डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं,

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी,

विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |

धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके

किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस्

फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |

कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि

क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||

लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा

कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |

मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे

मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर

प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |

भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक

श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा

निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |

सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं

महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल

द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |

धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक

प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्-

कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |

निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः

कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||

प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा-

वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी

रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||

जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस –

द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्-

– गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |

तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं

पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||

पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः

शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||

इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्

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