27. लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा।
तुम्हहि अछत को बरनै पारा।। उपर्युक्त पंक्तियों में लक्ष्मण के
मन का भाव व्यक्त हुआ है
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(क) साहसी एवं स्पष्ट वक्ता का
(ख) उदंड एवं अशिष्ट का
(ग) भीरू एवं दब्बू का
(घ) इनमें से कोई नहीं
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साहसी एवं स्पष्ट वक्ता का
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