28 मानना चाहता है आज ही ?
तो मान ले
त्योहार का दिन
आज ही होगा।
उमंगें यों अकारण ही नहीं उठतीं;
न अनदेखे इशारों पर,
कभी यों नाचता है मन।
खुले-से लग रहे हैं द्वार मंदिर के ?
बढ़ा पग-
मूर्ति के शृंगार का दिन
आज ही होगा।
न जाने आज क्यों जी चाहता है
स्वर मिलाकर
अनसुने स्वर में किसी के
कर उठे जयकार।
न जाने क्यों
बिना पाए हुए ही दान
याचक मन
विकल है
व्यक्त करने के लिए आभार।
कोई तो, कहीं तो,
प्रेरणा का स्रोत होगा ही,
उमंगें यों अकारण ही नहीं उठती:
नदी में बाढ़ आई है
कहीं पानी गिरा होगा।
प्रश्न-
1. उचित शीर्षक दीजिए।
2. कवि आज ही त्योहार क्यों मनाना चाहता है ?
3. 'उमंगें यों अकारण ही नहीं उठतीं-में कवि क्या कहना चाहता है ?
4. 'याचक मन विकल है' में मन के विकल होने का क्या अर्थ है ?
5. 'नदी में बाढ़ आई है, कहीं पानी गिरा होगा'-का संकेतार्थ स्पष्ट कीजिए।
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