29. निन्दन्तु नीतिनिपुणाः यदि वा स्तुवन्तु , लक्ष्मीः
समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्। अद्यैव वा मरणमस्तु
युगान्तरे वा, न्यायात्पथः प्रविचलन्ति पदं न
धीराः।। अस्य श्लोकस्य भावार्थं हिन्दीभाषायाम्
लिखत-
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नीति जानने वाले निंदा करें या स्तुति करें।लक्ष्मी आये या जाये
आज ही मरना हो या बाद मे ं
न्या के रास्तों पर चलने वाले वीर धीर पुरुष कभी भी विचलित नहीं होते।
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