Hindi, asked by jyotisingh7863, 2 months ago

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9. निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए : (लगभग 300 शब्दों में)
अजौ तरयौना ही रह्यो, श्रुति सेवत इक रंग।
नाक-बांस बेसरि लयो, बसि मुकुतनु कै संग।।​

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Answered by kavithakanishka4
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I don't know this question answer

Answered by cm3809773gmailcom
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संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत दोहा हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि बिहारी लाल रचित दोहों से लिया गया है। इस दोहे में कवि ने श्लेष अलंकार के माध्यम से सत्संग की महिमा दिखाई है तथा राजदरबारों में व्याप्त गुटबंदियों और चुगली की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया है। व्याख्या-सामान्य अर्थकवि कानों में पहने जाने वाले आभूषण’तयौना’ को संबोधित करते हुए कहता है-अरे तयौना ते एक ही रंग (स्वर्ण-रंग) में रहने के कारण कोई प्रगति नहीं कर पाया। आज तक कानों में ही पहना जा रहा है। जबकि मोतियों को साथ में लेने के कारण ब्रेसर (नाक के आभूषण) ने व्यक्ति के सम्मान की प्रतीक ‘नाक’ पर स्थान पा लिया है। श्लेष से अन्य अर्थ-हे एक निष्ठभाव से वेद-शास्त्रों का अध्ययन करने वाले। तू अभी तक अपना उद्धार नहीं कर पाया, जब कि पुक्त पुरुषों की संगति करके, सामान्य जन भी स्वर्ग के भागी हो गए। एक अन्य अर्थ-कवि राजदरबारों में चलने वाले कुटिल व्यवहारों पर व्यंग्य करते हुए कहता है-अरे निरंतर राजा के कान भरने वाले ! तेरी अभी तक दरबार में कोई उन्नति नहीं हो पाई। जबकि दरबार के निष्पक्ष लोगों का संग करने वाले राज की नाक बन गए। राजा उन पर गर्व करने लगा है॥ विशेष- (i) कवि की अलंकार-प्रियता और चमत्कार प्रदर्शन की लालसा, इस दोहे में प्रत्यक्ष हो रही है। (ii) बिहारी गागर में सागर भरने वाले कवि कहे जाते हैं। दोहे की इस छोटी-सी गागर में कवि ने वास्तव में अर्थ-वैभव का सागर भर दिया है। (iii) राजसभाओं की संकृति का कवि ने निकट से निरीक्षण किया था। अत: उसके उपर्युक्त व्यंग्य वचन बड़े सटीक बन पड़े हैं। (iv) ‘तयौना’, ‘श्रुति’, ‘सेवत’, ‘इकरंग’, ‘नाक’, ‘बेसरि’ तथा ‘मुकुतन’ में श्लेष अलंकार का प्रयोग हुआ है। (v) कवि बिहारी के काव्य कौशल का पूर्ण वैभव इस दोहे में प्रकाशित हो रहा है।

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