3.1.संसार में शांति, व्यवस्था और सद्भावना के प्रसार के लिए बुद्ध, ईसा मसीह, मुहम्मदचैतन्य, नानक आदि महापुरुषों ने धर्मकेमाध्यम से मनुष्य को परम कल्याण के पथ का निर्देश किया, किंतु बाद में यही धर्ममनुष्य के हाथ में एक अस्त्र बन गया।धर्म के नाम पर पृथ्वी पर जितना रक्तपात हुआउतना और किसी कारण से नहीं। परधीरे-धीरे मनुष्य अपनी शुभ बुधि से धर्म के कारणहोने वाले अनर्थ को समझने लग गयाहै। भौगोलिक सीमा और धार्मिक विश्वासजनित भेदभावअब धरती से मिटते जा रहे हैं।वैज्ञानिक प्रगति तथा संचार के साधनों में वृद्धि केकारण देशों की दूरियाँ कम हो गई हैं।इसके कारण मानव-मानव में घृणा, ईष्र्या वैमनस्य कटुता में कमी नहीं आई। मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रतिजागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है शिक्षा का व्यापक प्रसार।
मनुष्य अधर्म के कारण होने वाले अनर्थ को कैसे समझने लगा है।
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