3) आज की सभ्यता हम सब को क्या बाँट रही है?
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आज सभ्यता वहशी बन, पेड़ों को काट रही है। जहर फेफड़ों में भरकर हम सब को बाँट रही है। तो विनती है यही, कभी मत उस दुनिया को खोना। पेड़ों को मत कटने देना, मत चिड़ियों को रोना।
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