3. आशय स्पष्ट कीजिए ।
तू जननी मन की अति भोरी, इनकी कहे पतियायो।
जिए तेरे कछु भेद उपजि है, जानी परायो जायो ।।
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भावार्थ :--
श्यामसुन्दर बोले- `मैया ! मैंने मक्खन नहीं खाया है । सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देती हो।चार पहर भटकने के बाद साँझ होने पर वापस आता हूँ।मैं छोटा बालक हूँ मेरी बाहें छोटी हैं, मैं छींके तक कैसे पहुँच सकता हूँ? ये सब सखा मेरे से बैर रखते हैं, इन्होंने मक्खन जबऱन मेरे मुख में लिपटा दिया। माँ तू मन की बड़ी भोली है, इनकी बातों में आ गई। तेरे दिल में जरूर कोई भेद है,जो मुझे पराया समझ कर मुझ पर संदेह कर रही हो। ये ले, अपनी लाठी और कम्बल ले ले, तूने मुझे बहुत नाच नचा लिया है। सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु ने अपनी बातों से माता के मन को मोहित कर लिया. माता यशोदा ने मुसकराकर श्यामसुन्दर को गले लगा लिया ।
प्रस्तुत पंक्तियों का आशय : -
तू जननी …………………….. जानी परायो जायो ।।
श्री कृष्ण माखन चुराते हुए पकड़े जाने पर अपनी माता से कहते हैं कि माँ तू मन और अक्ल की बड़ी भोली है, जो इनकी बातों में विश्वास कर रही हो l लगता है तेरे दिल में जरूर कोई ना कोई भेद है, जो मुझे पराया समझकर मुझ पर संदेह कर रही हो।
प्रसंग: प्रस्तुत पंक्तियां कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित है l उपर्युक्त पंक्तियां ‘सूरसागर’ में आए वात्सल्यभाव के पदों से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में बाल श्रीकृष्ण माखन चुराते पकड़े जाते हैं और अपनी माता से बहाने बनाकर माखन चुराने की बात का खण्डन करने का प्रयास करते हैं।
विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में कोमलकांत ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। जिनमें गीति शैली है। यहां अनुप्रास तथा विनयोक्ति अलंकार का भी प्रयोग किया गया हैं।
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