(3)
अब हम सकल कुसल करि माँनाँ
स्वाँति भई तब गोब्यंद जाँनाँ।। टेक।।
तन मैं होती कोटि उपाधि, भई सुख सहज समाधि।।
जम थै उलटि भये है [म, दुख सुख किया विश्राम ।।
बैरी उलटि भये हैं मीता साषत उलटि सजन भये चीता।।
आपा जानि उलटि ले आप, तौ नहीं ब्यापै तीन्यूँ ताप।।
अब मन उलटि सनातन हूवा, तब हम जाँनाँ जीवत मूवा।।
कहै कबीर सुख सहज समाऊँ, आप न डरौ न और डराऊँ।।
sadharan bhayakh
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nice poem
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This question via very good
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