3. अज्ञेय ने जापान में हुआ विस्फोद पर कौन-सी कविता लिखी है?
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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' (7 मार्च, 1911 - 4 अप्रैल, 1987) को कवि, शैलीकार, कथा-साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण मोड़ देने वाले कथाकार, ललित-निबन्धकार, सम्पादक और अध्यापक के रूप में जाना जाता है।[3] इनका जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कसया, पुरातत्व-खुदाई शिविर में हुआ।[4] बचपन लखनऊ, कश्मीर, बिहार और मद्रास में बीता। बी.एससी. करके अंग्रेजी में एम.ए. करते समय क्रांतिकारी आन्दोलन से जुड़कर बम बनाते हुए पकड़े गये और वहाँ से फरार भी हो गए। सन्1930 ई. के अन्त में पकड़ लिये गये। अज्ञेय प्रयोगवाद एवं नई कविता को साहित्य जगत में प्रतिष्ठित करने वाले कवि हैं। अनेक जापानी हाइकु कविताओं को अज्ञेय ने अनूदित किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के एकान्तमुखी प्रखर कवि होने के साथ-साथ वे एक अच्छे फोटोग्राफर और सत्यान्वेषी पर्यटक भी थे।
अज्ञेय ने जापान में हुए विस्फोट पर एक मार्मिक कविता लिखी हैं । उनके द्वारा लिखी गई कविताओं की कुछ पंक्तियाँ-
चांदनी चुपचाप सारी रात-
सोने आंँगन में
जाल रचती रही।
मैं दम सादे रहा
मन में अलक्षित
आंधी मचती रही।
खुल गई नाव
घिर आई संझा,
सुरज डूबा सागर-तीरे।
यह दीप अकेला स्नेह भरा
है गर्व भरा मदमाता पर
इस को भी पंक्ति दे दो।
एक क्षण भर और
रहने दो मुझे अभिभूत
फिर जहाँ मैने संजो कर
और भी सब रखी हैं
ज्योति शिखायें
वहीं तुम भी चली जाना
शांत तेजोरूप!
मेरा जीवन ललकार बने, असफलता ही असि-
धारा बने-
इस निर्मम रण में पग - पग का रुकना ही मेरा
वार बने-
मैं कब कहता हूंँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले? मैं कब कहता हूंँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट
मिले?
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