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(3) बारे उजियारौ लगै, बढ़े अँधेरो होय ।।
॥
रहिमन जिह्वा बावरी, कहि गई सरग पताल.
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क्या किया जाय इस पगली जीभ का, जो न जाने क्या-क्या उल्टी-सीधी बातें स्वर्ग और पाताल तक की बक जाती है। खुद तो कहकर मुहँ के अन्दर हो जाती है, और बेचारे सिर को जूतियाँ खानी पड़ती हैं।
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