3) चोल शासकों ने सत्ता-प्रदर्शन एवं दैवीय समर्थन प्राप्त करने हेतु किन कार्यकलापों को
अपनाया?
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चोल शासकों ने सत्ता प्रदर्शन एवं दैवीय समर्थन प्राप्त करने के लिए अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, जिसमें न केवल देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित की जाती है बल्कि चोल राजवंश के सम्राटों की मूर्तियां भी स्थापित की जाती थी। सम्राट की मृत्यु होने के बाद दैवीय रूप में उसकी पूजा भी की जाती थी। उदाहरण के लिये तंजौर के मंदिर में चोल शासक परांतक द्वितीय की प्रतिमा तथा राजेंद्र चोल की प्रतिमा स्थापित की गई थी।
चोल शासकों ने अनेक सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया और उनके द्वारा बनवाए गए मंदिर स्थापत्य कला और मूर्तिकला के अप्रतिम उदाहरण हैं। चोल मंदिरों के आसपास बड़ी-बड़ी बस्तियां विकसित हो जाती और यह मंदिर उन बस्तियों का केंद्र बन जाते थे। इन मंदिरों को शासकों और अन्य लोगों द्वारा भरपूर मात्रा में भूमि और अन्य प्रकार का दान मिलता था, जिससे यह मंदिर निरंतर समृद्ध होते रहते थे।
इस तरह दान में मिली गई भूमि तथा अन्य प्रकार के दान से मंदिरों की देखभाल करने वाले लोगों का निर्वाह बड़े आराम से हो जाता था। यह लोग मंदिरों के आसपास रहते थे, जिनमें पुरोहित से लेकर मालाकार, रसोइया, सफाईकर्मी, संगीतकार, नर्तक आदि होते थे।
चोल शासन के समय के मंदिर ना केवल पूजा-आराधना के केंद्र होते थे बल्कि उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का भी केंद्र थे। चोल शासकों द्वारा मंदिरों में अनेक तरह की कांस्य प्रतिमाएं स्थापित की गई जो चोल राजाओं की सबसे विशिष्ट कला शैली रही है और संसार की उत्कृष्ट कांस्य प्रतिमाओं में गिनी जाती हैं।
इस तरह चोल शासकों ने सत्ता प्रदर्शन और दैवीय समर्थन प्राप्त करने के लिए अनेक तरह के मंदिरों का निर्माण करवाया।
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