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छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध मेले व मड़ई का सचित्र वर्णन कीजिए।
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Answer:
धमतरी अंचल को मेला और मड़ई का समन्वय क्षेत्र माना जा सकता है। इस क्षेत्र में कंवर की मड़ई, रूद्रेश्वर महादेव का रूद्री मेला और देवपुर का माघ मेला भरता है। एक अन्य प्रसिद्ध मेला चंवर का अंगारमोती देवी का मेला है। इस मेले का स्थल गंगरेल बांध के डूब में आने के बाद अब बांध के पास ही पहले की तरह दीवाली के बाद वाले शुक्रवार को भरता है। मेला और मड़ई दोनों का प्रयोजन धार्मिक होता है, किन्तु मेला स्थिर-स्थायी देव स्थलों में भरता है, जबकि मड़ई में निर्धारित देव स्थान पर आस-पास के देवताओं का प्रतीक- 'डांग' लाया जाता है अर्थात् मड़ई एक प्रकार का देव सम्मेलन भी है। मैदानी छत्तीसगढ़ में बइगा-निखाद और यादव समुदाय की भूमिका मड़ई में सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है। बइगा, मड़ई लाते और पूजते हैं, जबकि यादव नृत्य सहित बाजार परिक्रमा, जिसे बिहाव या परघाना कहा जाता है, करते है। मेला, आमतौर पर निश्चित तिथि-पर्व पर भरता है किन्तु मड़ई सामान्यतः सप्ताह के निर्धारित दिन पर भरती है। यह साल भर लगने वाले साप्ताहिक बाजार का एक दिवसीय सालाना रूप माना जा सकता है। ऐसा स्थान, जहां साप्ताहिक बाजार नहीं लगता, वहां ग्रामवासी आपसी राय कर मड़ई का दिन निर्धारित करते हैं। मोटे तौर पर मेला और मड़ई में यही फर्क है।
Explanation:
विविधतापूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य में विभिन्न स्वरूप के मेलों का लंबा सिलसिला है, इनमें मुख्यतः उत्तर-पूर्वी क्षेत्र यानि जशपुर-रायगढ़ अंचल में जतरा अथवा रामरेखा, रायगढ़-सारंगढ़ का विष्णु यज्ञ- हरिहाट, चइत-राई और व्यापारिक मेला, कटघोरा-कोरबा अंचल का बार, दक्षिणी क्षेत्र यानि बस्तर के जिलों में मड़ई और अन्य हिस्सों में बजार, मातर और मेला जैसे जुड़ाव अपनी बहुरंगी छटा के साथ राज्य की सांस्कृतिक सम्पन्नता के जीवन्त उत्सव हैं। मेला ‘होता’ तो है ही, 'लगता', 'भरता' और 'बैठता' भी है।