Hindi, asked by ovungliya62, 9 months ago

3.
एक फूल की चाह ' कविता का केंद्रीय भाव अपने शब्दों में लिखिए l​

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Answered by munnipandey10084
7

Answer:

उद्वेलित कर अश्रु-राशियाँ,

हृदय-चिताएँ धधकाकर,

महा महामारी प्रचंड हो

फैल रही थी इधर-उधर।

क्षीण-कंठ मृतवत्साओं का

करुण रुदन दुर्दांत नितांत,

भरे हुए था निज कृश रव में

हाहाकार अपार अशांत।

बहुत रोकता था सुखिया को,

‘न जा खेलने को बाहर’,

नहीं खेलना रुकता उसका

नहीं ठहरती वह पल-भर।

मेरा हृदय काँप उठता था,

बाहर गई निहार उसे;

यही मनाता था कि बचा लूँ

किसी भाँति इस बार उसे।

भीतर जो डर रहा छिपाए,

हाय! वही बाहर आया।

एक दिवस सुखिया के तनु को

ताप-तप्त मैंने पाया।

ज्वर में विह्वल हो बोली वह,

क्या जानूँ किस डर से डर,

मुझको देवी के प्रसाद का

एक फूल ही दो लाकर।

क्रमश: कंठ क्षीण हो आया,

शिथिल हुए अवयव सारे,

बैठा था नव-नव उपाय की

चिंता में मैं मनमारे।

जान सका न प्रभात सजग से

हुई अलस कब दोपहरी,

स्वर्ण घनों में कब रवि डूबा,

कब आई संध्या गहरी।

सभी ओर दिखलाई दी बस,

अंधकार की ही छाया,

छोटी सी बच्ची को ग्रसने

कितना बड़ा तिमिर आया!

ऊपर विस्तृत महाकाश में

जलते-से अंगारों से,

झुलसी-सी जाती थी आँखें

जगमग जगते तारों से।

देख रहा था-जो सुस्थिर हो

नहीं बैठती थी क्षण-भर,

हाय! वही चुपचाप पड़ी थी

अटल शांति सी धारण कर।

सुनना वही चाहता था मैं

उसे स्वयं ही उकसाकर-

मुझको देवी के प्रसाद का

एक फूल ही दो लाकर!

ऊँचे शैल-शिखर के ऊपर

मंदिर था विस्तीर्ण विशाल;

स्वर्ण-कलश सरसिज विहसित थे

पाकर समुदित रवि-कर-जाल।

दीप-धूप से आमोदित था

मंदिर का आँगन सारा;

गूँज रही थी भीतर-बाहर

मुखरित उत्सव की धारा।

भक्त-वृंद मृदु-मधुर कंठ से

गाते थे सभक्ति मुद -मय,-

‘पतित-तारिणी पाप-हारिणी,

माता, तेरी जय-जय-जय!‘

‘पतित-तारिणी, तेरी जय जय’-

मेरे मुख से भी निकला,

बिना बढ़े ही मैं आगे को

जाने किस बल से ढिकला!

मेरे दीप-फूल लेकर वे

अंबा को अर्पित करके

दिया पुजारी ने प्रसाद जब

आगे को अंजलि भरके,

भूल गया उसका लेना झट,

परम लाभ-सा पाकर मैं।

सोचा, -बेटी को माँ के ये

पुण्य-पुष्प दूँ जाकर मैं।

सिंह पौर तक भी आँगन से

नहीं पहुँचने मैं पाया,

सहसा यह सुन पड़ा कि – “कैसे

यह अछूत भीतर आया?

पकड़ो देखो भाग न जावे,

बना धूर्त यह है कैसा;

साफ स्वच्छ परिधान किए है,

भले मानुषों के जैसा!

पापी ने मंदिर में घुसकर

किया अनर्थ बड़ा भारी;

कलुषित कर दी है मंदिर की

चिरकालिक शुचिता सारी।“

ऐं, क्या मेरा कलुष बड़ा है

देवी की गरिमा से भी;

किसी बात में हूँ मैं आगे

माता की महिमा के भी?

माँ के भक्त हुए तुम कैसे,

करके यह विचार खोटा?

माँ के सम्मुख ही माँ का तुम

गौरव करते हो छोटा!

कुछ न सुना भक्तों ने, झट से

मुझे घेरकर पकड़ लिया;

मार मारकर मुक्के घूँसे

धम्म से नीचे गिरा दिया!

मेरे हाथों से प्रसाद भी

बिखर गया हा! सबका सब,

हाय! अभागी बेटी तुझ तक

कैसे पहुँच सके यह अब।

न्यायालय ले गए मुझे वे,

सात दिवस का दंड-विधान

मुझको हुआ; हुआ था मुझसे

देवी का महान अपमान!

मैंने स्वीकृत किया दंड वह

शीश झुकाकर चुप ही रह;

उस असीम अभियोग, दोष का

क्या उत्तर देता, क्या कह?

सात रोज ही रहा जेल में

या कि वहाँ सदियाँ बीतीं,

अविश्रांत बरसा करके भी

आँखें तनिक नहीं रीतीं।

दंड भोगकर जब मैं छूटा,

पैर न उठते थे घर को;

पीछे ठेल रहा था कोई

भय-जर्जर तनु पंजर को।

पहले की-सी लेने मुझको

नहीं दौड़कर आई वह;

उलझी हुई खेल में ही हा!

अबकी दी न दिखाई वह।

उसे देखने मरघट को ही

गया दौड़ता हुआ वहाँ,

मेरे परिचित बंधु प्रथम ही

फूँक चुके थे उसे जहाँ।

बुझी पड़ी थी चिता वहाँ पर

छाती धधक उठी मेरी,

हाय! फूल-सी कोमल बच्ची

हुई राख की थी ढ़ेरी!

अंतिम बार गोद में बेटी,

तुझको ले न सका मैं हा!

एक फूल माँ का प्रसाद भी

तुझको दे न सका मैं हा!

Answered by Anonymous
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Answer:

Hope it help you ✌✌

Explanation:

अगर फूल हमारे आस पास रहते हैं तो हमारे आसपास हरियाली रहती है और अगर हरियाली रहती है तो सब का स्वास्थ्य अच्छे से बना रहता है और जानवरों को जीव जंतु को कोई दिक्कत नहीं होती है रहने में लेकिन कुछ लोग पेड़ों पर हो फूलों को काटते हैं जो कि गलत है जिससे हमारी पृथ्वी की हरियाली 3:00 जाती है इसलिए हमें पेड़ पौधे हमेशा लगाने चाहिए और फूल भी

JAI HIND JAI BHARAT

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