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गैंग्रीन
अज्ञेय
दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो
उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा
भकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी बोझल और प्रकम्पमय और घना-सा
सन्नाटा फैल रहा था...
___मेरी आहट सुनते ही मालती बाहर निकली। मुझे देखकर, पहचान
कर उसकी मुरझाई हुई मुख-मुद्रा तनिक से मीठे विस्मय से जागी-सी और
केर पूर्ववत् हो गई। उसने कहा, “आ जाओ।” और बिना उत्तर की
- - गीता की ओर चली। मैं भी उसके पीछे हो लिया।
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