3. गोनू झा ने दोस्ती को दुश्मनी में कैसे बदल दिया ? संक्षेप में लिखिए।
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Explanation:
झूठ का सच
गोनू झा का एक लॅंगोटिया यार था; वह उनके दुख-सुख का साथी था। उससे कभी मनमुटाव भी नहीं हुआ था।
एक दिन उसने गोनू झा से कहा, 'मीत, सभी लोग तुम्हारा लोहा मानते हैं। तुम कैसे किसी दोस्त को दुश्मन, दुश्मन को दोस्त, मूर्ख को विद्वान, साधु को ठग और बेईमान को ईमानदार सिद्ध कर देते हो, यह बात मेरी समझ में नहीं आती?
गोनू झा ने सहज भाव से कहा, 'मैं किसी को एक नजर में ही पहचान जाता हूँ कि आदमी अच्छा है या बुरा। तदनुसार उस पर मेरी धारणा बद्धमूल होती है। उसी के स्वभावानुसार मैं निर्णय लेता हूँ। अगर कोई परिस्थितिवश झूठा अथवा बेईमान बन भी जाता है जबकि उसका चरित्र वैसा नहीं होता, तो मैं उसे सुधरने का अवसर देता हूँ। उसी प्रकार कोई मक्कार अगर पाखंडी-महान बना रहता है तो मैं उसे उद्घाटित करके ही दम लेता हूँ।
उसने उत्सुकता से पूछा, 'मेरे बारे में तुम्हारी क्या धारणा है?"
गोनू झा ने अनमने भाव से कहा, 'तुम तो अजीत दोस्त हो, इसलिए तुम्हारे बारे में क्या धारणा बनानी है?
उसने जोर देते हुए कहा, 'फिर भी!
गोनू झा ने चिंता प्रकट करते हुए कहा, 'तब मुझे शंका हो रही है कि हमारी दोस्ती दुश्मनी में न बदल जाए? ना-ना, इतने दिनों की यारी और तुमसे दुश्मनी?'
तो ठीक है; मैं सोच रहा हूँ। गोनू झा ने सहजता से कहा।
वह दोस्त अकसर गोनू झा से यही प्रश्न कर देता और गोनू झा यह कहकर टाल देते, 'मैं अपने कामों में लगा हूँ; समय आने पर बता दूँगा। तब तक तुम मुझे मिट्टी के एक हजार सिक्के दे सकते हो? अभी पाँच सौ ही चाहिए और शेष बाद में दे देना।'
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