Hindi, asked by choprabhoomi18, 5 months ago

3. जेल में रहने वाले कैदियों की दशा व दिनचर्या की कल्पना करते हुए 150 शब्दों
का एक अनुच्छेद लिखिए।​

Answers

Answered by ayshap2815
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Answer:

मुर्गे की बांग पर जगने-जगाने का दौर भले पीछे छूट गया लेकिन आज भी अधिकांश जेलों में बंदियों को वक्त और जिम्मेदारी का एहसास घंटे की गूंज पर ही होता है।

हर साठ मिनट बाद बजने वाले घंटे उन्हें समय बताते हैं तो ‘पचासा’ की एकमुश्त गूंज उन्हें उनकी जिम्मेदारी बताती है। सुबह से शाम तक चार बार पचासा गूंजती है, जिनका हर बार उद्देश्य अलग-अलग होता है।

कैदियों की दिनचर्या तय करने वाली पहली पचासा सुबह पांच बजे गूंजती है। इसका उद्देश्य कैदियों को जगाकर नित्य क्रिया से फारिग होकर सात बजे प्रार्थना सभा में एकत्रित करने की सूचना देना है। यहीं से बंदियों को काम पर भेजा जाता है।

दूसरी पचासा दिन में 11 बजे गूंजती है जिसका मतलब कैदियों को काम से वापस लौटकर खाना बंटने वाली जगह पर पहुंचना है। दोपहर में एक बजे तीसरी पचासा कैदियों को अपने हिस्से का काम तेज करने का इशारा देती है।

चौथी और अंतिम पचासा शाम को पांच बजे गूंजती है जिसका मतलब है कि हर कैदी और बंदी काम छोड़कर वापस बैरक के करीब आ जाएं। रात का खाना लेकर बैरक में वापस हो जाएं। हर पचासा के साथ जेल कर्मचारी कैदियों-बंदियों की गिनती करते हैं।

शाम पांच बजे की अंतिम पचासा बजने तक जेल को जिनके रिहाई का आदेश मिल चुका होता है, उनकी ही रिहाई उस दिन संभव हो पाती है। अंतिम पचासा यानी शाम पांच बजे के बाद आए रिहाई आदेश वाले कैदी अगले दिन जेल से बाहर आ पाते हैं।

जेल में किसी भी तरह का खतरा होने पर जेल का घंटा बेतुके ढंग से बजाया जाता है। घंटे की गूंज ही खतरे या आपातकाल का एहसास कराने लगती है। इसका मतलब बंदी रक्षक से लेकर जेल के आला अफसर तक को खतरे से मुकाबले के लिए अलर्ट करना है।

कैदी भागने या इस तरह की कोशिश करने, जेल में संघर्ष होने या कोई हादसा हो जाने पर खतरे की घंटी के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान कैदियों-बंदियों को प्रार्थना सभा वाले ग्राउंड में पहुंचकर सावधान मुद्रा में खड़ा होना होता है।

बस्ती जिला कारागार के जेलर वीके मिश्रा ने बताया कि जेल में हर घंटे पर समय बताने के लिए घंटे बजना और सुबह पांच से शाम पांच बजे तक चार बार पचासा का इस्तेमाल होना, जेल की स्थापना के वक्त से तय है। पचासा से कैदियों ही नहीं बंदी रक्षकों की भूमिका भी तय होती है।

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