3. जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काट काई। सब घटि अंतरि तूंही व्यापक धरै सरूपै सोई॥ इसके आधार पर बताइए कि कबीर की दृष्टि में ईश्वर का क्या स्वरूप है।
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