3 किसी ऐतिहासिक पर्यटन स्थल के भ्रमण पर अपने मित्र को पत्र लिखिए।
4 ‘हमारे बुजुर्ग-हमारी धरोहर' विषय पर 200-250 शब्दों में निबंध लिखिए ।
5 वाचन कौशल के मूल्यांकन हेतु कोई एक स्वरचित कविता लिखिए व याद कीजिए।
8 विज्ञापन की आकर्षक दुनिया, विद्यार्थी और अनुशासन, मोबाइल फोन : कितना सुखद-कितना दुखद,अच्छे स्वास्थ्य का मंत्र : व्यायाम, लोकतंत्र और चुनाव, देश-प्रेम आदि में से किसी एक विषय पर वाचन कौशल के मूल्यांकन हेतु भाषण तैयार कीजिए।
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Answer:
3
पता.................
दिनाँक............
प्रिय सखी ममता,
बहुत प्यार!
बहुत दिनों से पत्र नहीं लिख पा रही थी। इसके लिए क्षमा चाहती हूँ। मैं दिल्ली से बाहर गई हुई थी। अतः तुम्हारे पत्रों का जवाब भी नहीं दिया। मित्र इस बार मैं हरिद्वार की यात्रा में गई थी। वह मंदिरों का शहर था। वहाँ विभिन्न प्रकार के मंदिर विद्यमान थे। विशाल और सुंदर मंदिर मन को शांति प्रदान कर रहे थे। शाम को हम आराम करने के पश्चात गंगा माता के घाट पर गए। कलकल करती गंगा माता मानो जीवन को सुख प्रदान कर रही हो। वहाँ विभिन्न घाट विद्यमान थे। हम हरकी पौड़ी नामक घाट पर गए। पिताजी ने दादा के नाम का पिंडदान किया। हम शाम की आरती की प्रतीक्षा करने लगे। संध्या के समय घाट पर विभिन्न तरह के दीप जल उठे। आरती आरंभ हो गई। पूरे घाट में माँ गंगा की आरती गूंज उठी। बड़े-बड़े दीपदानों से गंगा माँ चमक उठी। ऐसे लग रहा था मानो माँ गंगा में इन दीपों का सोना रूपी प्रकाश मिल रहा हो। मेरी आँखें ऐसा दृश्य देखकर भावविभोर हो उठी। मैंने जीवन में कभी परम शांति और सुख का अनुभव नहीं किया था। भक्ति की भावना मेरी नसों में प्रवाहित होने लगी। आरती के पश्चात हम बहुत देर तक माँ गंगा के पवित्र जल में पैरों को डूबाए बैठे रहें। ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो माँ गंगा मुझे चिरंजीवी रहने का आशीर्वाद दे रही हो। पिताजी के कहने पर हम प्रातःकाल फिर से उसी घाट पर गए और माँ के ठंडे शीतल जल का स्पर्श पाकर धन्य हो गए। यह माँ को हमारी तरफ से विदाई थी।
अब पत्र समाप्त करती हूँ। बताना तुम्हें पत्र पढ़कर कैसा लगा?
तुम्हारी सखी
चरणी
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हर घर में बड़े-बूढ़े लोग होते हैं। ये दादा-दादी, नाना-नानी के नाम से जाने जाते हैं। इनका स्नेह अपने नाती-पोते दोनों को बहुत मिलता है। इनकी छांव में एक बचपन प्यार और स्नेह पाता है। माता-पिता के अतिरिक्त इनका स्नेह बच्चे के व्यक्तित्व को निखारता है। इनका दुलार तथा संस्कार बच्चें को समझदार और जिम्मेदार बनाते हैं। यदि ये न हो तो माता-पिता नौकरी करने के लिए न जा पाएँ।
पहले के समय में पिता नौकरी करते थे तथा माता घर की जिम्मेदारी संभालती थी। परन्तु जैसे-जैसे समय बदला अब पत्नी भी पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं। ऐसे में बच्चों को एक ऐसे स्नेह की आवश्यकता होती है, जिसमें अपनेपन के साथ-साथ सुरक्षा की भावना भी व्याप्त हो। दादा-दादी और नाना-नानी इसी कमी को पूरी करते हैं। इतना होने के बाद भी हम उन्हें उपेक्षा तथा अपमान देते हैं। उन्हें बोझ समझते हैं और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़ लेते हैं। हमें ये सोचना चाहिए कि यदि ये हैं, तो हमारे बच्चे घरों में सुरक्षित हैं। वह उनकी छांव में ऐसे ही बड़े हो रहे हैं, जैसे माता-पिता की छांव में। हमें उनके महत्व को समझते हुए उन्हें प्यार तथा सम्मान देना चाहिए। ये उनका अधिकार है।
यदि हम आज अपने बड़ों के साथ ऐसा नहीं करते हैं, तो कल को हमारे साथ भी इसी तरह का व्यवहार होगा। ये समाज की धरोहर हैं। यदि हम इनका ही सम्मान नहीं करेंगे, तो हमारा समाज कल पथभ्रष्ट हो जाएगा। अतः हमें चाहिए कि इस धरोहर का खास ख्याल रखे।
Answer:
I am lorry.
Explanation:
guess the character