3. लङ्लकारस्य मध्यमपुरुषस्य उचितक्रियापदैः रिक्तस्थानानि पूरयता
लङ्लकार मध्यमपुरुष के उचित क्रियापदों से रिक्त स्थान भरिए।
(Fill in the blanks using past tense form of the verbs given in the
क) त्वं मधुरं वचनम्
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Explanation:
15 दिसंबर को सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत ने कहा कि खनन और गैर-खनन परिचालन जैसे कामों में लगी महिलाएँ अधिकारी के रूप में भूमिका निभा रही हैं साथ ही वे वायु रक्षा प्रणाली का प्रबंधन भी कर रही हैं, लेकिन उन्हें फ्रंटलाइन लड़ाकू भूमिका निभाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि आर्मी में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका (combat role) इसलिये नहीं दी जाती है क्योंकि उनके ऊपर बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी होती है। उन्होंने यह भी कहा कि महिलाएँ अपने साथी जवानों पर ताक-झाँक करने का आरोप भी लगा सकती हैं इसलिये उन्हें कॉम्बैट रोल के लिये भर्ती नहीं किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा कि फ्रंटलाइन मुकाबले में अधिकारियों के मारे जाने का खतरा होता है। युद्ध में मारे गए शहीद जब ताबूत में वापस आते हैं, तो हमारा देश इसे देखने के लिये तैयार नहीं होता है।
पृष्ठभूमि
लंबे समय तक सशस्त्र बलों में महिलाओं की भूमिका चिकित्सीय पेशे जैसे डॉक्टर और नर्स तक ही सीमित थी।
1992 में नॉन-मेडिकल जैसे-विमानन, रसद, कानून, इंजीनियरिंग और एक्जीक्यूटिव कैडर में नियमित अधिकारियों के रूप में महिलाओं के प्रवेश के दरवाज़े खुले।
भर्ती के लिये प्रकाशित विज्ञापनों के आधार पर हज़ारों उत्साही युवा महिलाओं ने आवेदन किया और यह भारतीय सेना के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ था।
हाल के वर्षों में सेना में लड़ाकू पदों और टैंक इकाइयों में पनडुब्बियों पर सेवा के लिये प्रशिक्षण देकर महिलाओं को अधिक समावेशी बनाने के लिये कदम उठाए गए हैं।
फरवरी 2016 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने घोषणा की कि महिलाओं को भारतीय सशस्त्र बलों के सभी वर्गों में युद्ध की भूमिका निभाने की अनुमति दी जाएगी जो दुनिया के सबसे नर-वर्चस्व वाले सेना में लैंगिक समानता की दिशा में एक सार्थक कदम उठाने की ओर इशारा करता है।
कुछ महीने पहले रक्षा मंत्रालय के एकीकृत मुख्यालय ने सेना के सभी विंग से महिलाओं के लिये विभिन्न प्रकार की भूमिका पर सुझाव देने के लिये कहा है।
अक्तूबर 2015 में सरकार ने महिलाओं को लड़ाकू बलों में शामिल करने की ओर पहला कदम उठाया। जून 2017 से तीन सालों तक की प्रायोगिक अवधि में भारतीय वायु सेना की महिला पायलट युद्धक विमान उड़ाने के लिये हो जाएंगी।
भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका
अभी तक भारतीय सेना में महिलाओं की तैनाती चिकित्सा, शिक्षा, कानून, सिग्नल और इंजीनियरिंग जैसी इकाइयों में होती रही है।
अब भारतीय वायुसेना में महिला फाइटर पायलटों की नियुक्ति होनी शुरू हो गई है। 2016 में तीन महिलाओं को फायटर पायलट के रूप में तैनात किया गया था। इनकी नियुक्ति पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी।
भारतीय नौसेना भी जंगी जहाज़ों पर महिलाओं को तैनात करने पर विचार कर रही है। भारतीय नौसेना में महिला अधिकारी कॉम्बैट तथा कॉम्बैट सपोर्ट की भूमिका में कार्यरत हैं।
पायलट और ऑब्जर्वर के रूप में क्षमता के अनुसार महिलाओं को मैरीटाइम सैनिक सर्वेक्षण विमानों पर लड़ाकू भूमिका में नियोजित किया जा रहा है।
भारतीय नौसेना में कानून एवं शिक्षा तथा नौसेना कन्स्ट्रक्टर्स शाखा में महिला अधिकारियों के लिये स्थायी कमीशन की व्यवस्था की नीति को अंतिम रूप दिया गया है।
सरकार ने भारतीय वायुसेना की कुछ शाखाओं में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने के लिये भावी नीतियाँ जारी की थीं, जबकि भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की नीति को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
भारतीय वायुसेना में अब पहले से कहीं अधिक महिला पायलट हैं। अभी तक महिलाओं को विशेषज्ञ बलों, जैसे- घातक, गरुड़, मार्कोस, पैरा कमांडो आदि में लड़ाकों के रूप में अनुमति नहीं दी गई है।
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने मार्च 2017 में घोषणा की कि केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CRPF) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में 30 प्रतिशत तथा सीमा सुरक्षा बल (BSF), सशस्त्र सीमा बल (SSB) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में 15 प्रतिशत कॉन्स्टेबल रैंक के पदों पर महिलाओं को भर्ती किया जाएगा।
जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, यू.एस., ब्रिटेन, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्राँस, नॉर्वे, स्वीडन और इज़राइल जैसे देशों ने महिलाओं को युद्ध में भूमिका निभाने की अनुमति दी है।
वायु रक्षा के क्षेत्र में महिलाएँ हमारी हथियार प्रणालियों का प्रबंधन कर रही हैं। लेकिन हमने महिलाओं को फ्रंटलाइन मुकाबले में नहीं रखा है। जिसके पीछे लॉजिस्टिक तथा ऑपरेशनल चिंताओं को मुख्य कारण माना जाता है।
महिलाओं को कॉम्बैट रोल देने में क्या हैं कठिनाइयाँ?
1. शारीरिक मुद्दे
महिला-पुरुष के बीच कद, ताकत और शारीरिक संरचना में प्राकृतिक विभिन्नता के कारण महिलाएँ चोटों और चिकित्सीय समस्याओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। यह समस्या विशेष रूप से गहन प्रशिक्षण के दौरान होती है।
इसके अलावा, महिलाओं में अधिक ऊँचाई, रेगिस्तानी इलाकों, क्लीयरेंस डाइविंग और हाईस्पीड एविएशन (G-forces) जैसे कठिन इलाकों में नॉन-कॉम्बैट चोटें भी प्रायः देखी जाती हैं।
मासिक धर्म और गर्भावस्था की प्राकृतिक प्रक्रियाएँ महिलाओं को विशेष रूप से युद्ध स्थितियों में कमज़ोर बनाती हैं।
लड़ाकू क्षेत्रों में मासिक धर्म के शमन की आवश्यकता और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव हमेशा बहस के मुद्दे रहे हैं।
कठिन युद्धों में लंबे समय तक तैनाती और महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य पर शारीरिक गतिविधियों के गंभीर प्रभाव को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका में विशेष रूप से अध्ययन किया जा रहा है।
2. सामाजिक और मनोवैज्ञानिक मुद्दे
महिलाएँ अपने परिवार, विशेष रूप से अपने बच्चों से अधिक जुड़ी हुई होती हैं। वह परिवार से लंबे समय तक अलगाव के दौरान अधिक मानसिक तनाव में होती हैं जो कि सामाजिक समर्थन की आवश्यकता को इंगित करता है।
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