Hindi, asked by dheerajsahu771, 1 month ago

3. मुसाफिर के कदमों में तीव्रता क्यों नहीं है?​

Answers

Answered by cuteangle66
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Answer:

कहानी नहीं है। ... उनके अन्य उपन्यास है - लौटे हुए मुसाफिर ... और वे भारी कदमों से वहाँ से निकल जाते हैं।

Answered by MsQueen6
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किन्तु कथन की भंगिमा और बोलियों की जीवंतता प्राय: निजी छाप लिए है, यानी उनका अंदाजेबयां अपना-अपना है। सधुक्कड़ी भाषा के कबीर व दादू हों, चाहे ब्रज के सूर व रहीम हों, अवधी के जायसी व तुलसी हों या राजस्थानी भाषा की मीरा बाई हों और सिरायकी बोली के शेख फरीद व बुल्लेशाह हों। इन या ऐसे कवियों में किसी का अंदाजेबयां मुखर एवं व्यंग्यवाही है, किसी का विनम्र व दासभाव वाला है, किसी का भक्ित प्रधान है तो किसी का याराना अंदाज वाला है। फिर भी उनके दृष्टिकोण तथा कथ्य में कोई वैमनस्य नहीं। वैदिक परंपरा से वर्तमान गांधियन व्यू तक समाज-सापेक्ष संदेश का सूक्ष्म धागा विविध मोतियों को पिरोकर बहुलता को रंगीन माला का रूप दिए हुए है। कठोपनिषद् में ‘उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्य वरान्निबोधत’ (उठो, जागो, श्रेष्ठ महापुरुषों के पास जाकर ज्ञान अर्जित करो) इत्यादि आर्ष उपदेश से चेताया है तो ‘कदम कदम बढ़ाए जा, खुशी के गीत गाए जा’ जैसे कौमी गीतकार वंशीधर शुक्ल ने जागरण गीत यह भी दिया, जो आजादी के दीवानों द्वारा प्रभातफेरी में गाया जाता था- ‘उठ जाग मुसाफिर भोर भई, अब रैन कहां जो सोवत है’ इसे व्यवहार में और स्पष्ट करते हुए गाया जाता था- ‘जो जागत है सो पावत है, जो सोवत है सो खोवत है’। अविभाजित पंजाब प्रांत में जन्मे सूफी गायक बुल्लेशाह सर्व धर्म समभाव में विश्वास जमाते हुए अपनी मुलतानी काफियों (रागों) द्वारा ‘इश्के हकीकी’ अथवा ईश्वर-प्रेम की पराकोटि में जा रमते हैं और इस जीवन का सदुपयोग इस प्रकार जतलाते हैं- ‘अब तो जाग मुसाफर प्यारेरैन गई लटके (छिप गए) सब तारेआवगौन सराई डेरेसाथ तियार मुसाफर तेरेअजे न सुणियों कूच नगारे’ अर्थात दुनिया एक सराय है, सभी को अपने जीवन के दिन पूरे करके जाना है। इस आवागमन में जिन्हें जाना है वे कूच करने को तैयार हैं, कूच का नगाड़ा बजते ही उन्हें दुनिया की सराय छोड़ के चल देना है। आगे कहते हैं- ‘कर ले आज करनी दा बेरा (वेला)मुड़ (फिर) न होसी आवण तेरासाथी चल्लो पुकारे..बुल्ला शौह (परमात्मारूपी शौहर) दे पैरीं पड़िएगफलत छोड़ कुझ हीला (उद्यम) करिएमिरग जतन-बिन खेत उजाड़े’ अर्थात बुल्लेशाह कहते हैं परमात्मा रूप प्रिय पति के पांवों में खुद को डाल दो, आलस्य व प्रमाद को छोड़कर सत्कमरे में अपने को जोत दो। यदि तुम जागते नहीं रहे यानी सावधानी नहीं बरती तो माया रूप हिरणा तुम्हारे जीवन के सत्कमरे की फसल को उजाड़ देंगे, इसलिए अब तू उठ जाग।ं

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