3. महिलाओं ने आंदोलन कैसे सफल बनाया?
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कमलादेवी चट्टोपाध्याय
वो साल 1930 था. उस समय कमलादेवी चट्टोपाध्याय 27 साल की थीं.
कमलादेवी को ख़बर मिली कि महात्मा गांधी डांडी यात्रा के ज़रिए 'नमक सत्याग्रह' की शुरुआत करेंगे. जिसके बाद देश भर में समुद्र किनारे नमक बनाया जाएगा. लेकिन इस आंदोलन से महिलाएं दूर रहेंगी.
महात्मा गांधी ने आंदोलन में महिलाओं की भूमिका चरखा चलाने और शराब की दुकानों की घेराबंदी करने के लिए तय की थी लेकिन कमालदेवी को ये बात खटक रही थी.
अपनी आत्मकथा 'इनर रिसेस, आउटर स्पेसेस' में कमलादेवी ने इस बात की चर्चा की है.
वो लिखती हैं "मुझे लगा कि महिलाओं की भागीदारी 'नमक सत्याग्रह' में होनी ही चाहिए और मैंने इस संबंध में सीधे महात्मा गांधी से बात करने का फ़ैसला किया."कमलादेवी चट्टोपाध्याय
महात्मा गांधी उस वक्त सफ़र कर रहे थे.
लिहाज़ा कमलादेवी उसी ट्रेन में पहुंच गईं जिसमें गांधी थे और वो उनसे मिलीं.
ट्रेन में महात्मा गांधी से उनकी मुलाक़ात छोटी थी लेकिन इतिहास बनने के लिए काफ़ी थी.
पहले तो महात्मा गांधी ने उन्हें मनाने की कोशिश की लेकिन कमलादेवी के तर्क सुनने के बाद महात्मा गांधी ने 'नमक सत्याग्रह' में महिला और पुरुषों की बराबर की भागीदारी पर हामी भर दी. महात्मा गांधी का ये फ़ैसला ऐतिहासिक था.
इस फ़ैसले के बाद महात्मा गांधी ने 'नमक सत्याग्रह' के लिए दांडी मार्च किया और बंबई में 'नमक सत्याग्रह' का नेतृत्व करने के लिए सात सदस्यों वाली टीम बनाई. इस टीम में कमलादेवी और अवंतिकाबाई गोखले शामिल थीं.अनसूया साराभाईः गुजरात में श्रम आंदोलन की शुरुआत करने वाली पहली महिला
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर और महिलाओं के लिए काम करने वाली ग़ैर-सरकारी संस्था की संस्थापक रुचिरा गुप्ता का कहना है, "इस क़दम से आज़ादी के आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी. पूरी दुनिया ने देखा कि महिलाओं ने कंधे से कंधा मिलाकर नमक क़ानून तोड़ा. इससे कांग्रेस पार्टी में, राजनीति में और आज़ादी के बाद भी महिलाओं की भूमिका बदल गई''.