3. मधुर भाषा की विशेषताएँ बताइए।
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ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करे, आपहुं सीतल होय॥
विचारों में चाहे विरोधाभास हो, आस्था में चाहे विभिन्नताएं हो परन्तु मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए कि बात के महत्त्व का पता चल सके।
किसी ने सही कहा है कि अहम् को छोड़ कर मधुरता से सुवचन बोलें जाएँ तो जीवन का सच्चा सुख मिलता है। कभी अंहकार में, तो कभी क्रोध और आवेश में कटु वाणी बोल कर हम अपनी वाणी को तो दूषित करते ही हैं, सामने वाले को कष्ट पहुंचाकर अपने लिए पाप भी बटोरते हैं, जो कि हमें शक्तिहीन ही बनाते हैं।
किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के लिए व्यक्ति के व्यक्तित्व की निर्णायक भूमिका होती है और व्यक्तित्व विकास के लिए भाषा का बहुत महत्त्व होता है, परन्तु इसके साथ-साथ वाणी की मधुरता भी उतनी ही आवश्यक है।
बड़ो से हमेशा सुनते आएं हैं कि वह वाणी ही हैं जिससे मनुष्य के स्वाभाव का अंदाज़ा होता है। ईश्वर ने हमें धरती पर प्रेम फ़ैलाने के लिए भेजा है, और यही हर धर्म का सन्देश हैं। प्रेम की तो अजीब ही लीला है, प्रभु के अनुसार तो स्नेह बाँटने से प्रेम बढ़ता है...