Hindi, asked by champabisht01, 4 months ago

3. निकसत म्यान तैं मयूखें प्रलय-भानु केसी,
फार तोम-तम सै गयंदन के जाल को।
लागति लपटि कंठ बैरिन कै नागिन-सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडनि के माल को।
लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,
कहाँ लौ बखान करौं तेरी करबाल को।
प्रति भट कटक कटीले कै तै काटि-काटि,
कालिका-सी किलकि कलेऊ देति काल को।​

Answers

Answered by shishir303
7

निकसत म्यान तैं मयूखें प्रलय-भानु केसी,

फार तोम-तम सै गयंदन के जाल को।

लागति लपटि कंठ बैरिन कै नागिन-सी,

रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडनि के माल को।

लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली,

कहाँ लौ बखान करौं तेरी करबाल को।

प्रति भट कटक कटीले कै तै काटि-काटि,

कालिका-सी किलकि कलेऊ देति काल को।​

अर्थ ➲ जब महाराजा छत्रसाल युद्ध करते हैं, तो उनकी म्यान से निकलने वाली तलवार की चमक ऐसी प्रतीत होती है, जैसे प्रलयकारी सूरज की महाज्वाला निकल रही हो। सूरज की तरह चमकती उनकी यह तलवार युद्धक्षेत्र में अपने दुश्मनों की सेना रूपी अंधकार को चीर कर रख देती है और उसका नाश कर देती है। इस तलवार की लपटों से दुश्मनों के कंठ में कंठ से नागिनों के समान लिपट जाने वाली ज्वाला दिखाई देती है। इस तरह शत्रु के सिरो की माला को सजाती हुई यह तलवार भगवान शंकर के गले में पड़ी हुई मुंडो की माला की का आभास कराती है। महाराजाधिराज छत्रसाल अत्यंत बलशाली हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है। वे अपने दुश्मनों की सेना को काट-काट कर माँ काली के समान किलकारी देते हुए काल की भेंट चढ़ाते हैं।

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Answered by pratyanshu96
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Explanation:

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