Hindi, asked by anjalisingh06015, 17 days ago

3 निम्नलिखित अपठित गद्यांश/काव्यांश को पढकर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए देश प्रेम में आत्म विस्तार का भाव निहित है। जिस भाव के अंतर्गत व्यक्ति परिवार और समाज की परिधि से भी आगे अपने देश के प्रति अपना लेगाव अनुभव करने लगता है, उस भाव को देश प्रेम के अंतर्गत परिगणित किया जाता है। देश प्रेम में देश की रक्षा और देश के विकास को महत्व दिए जाने के साथ देश के प्रति पूज्य भाव का संचार भी सन्निहित होता है। जब तक व्यक्ति देश को अपना आराध्य नहीं बनाता, तब तक देश के प्रति समर्पण का भाव। भी उसमें जाग्रत नहीं होता। प्रश्न (i)
। (ii) देश के प्रति समर्पण का भाव कब जाग्रत होता है? (iii) उपर्युक्त गद्याश का सारांश लिखिए।​

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Answers

Answered by vishalnerniya39
4

Explanation:

उपयुक्त गद्यांश का सारांश

Answered by bhatiamona
0

प्रेम में आत्म विस्तार का भाव निहित है। जिस भाव के अंतर्गत व्यक्ति परिवार और समाज की परिधि से भी आगे अपने देश के प्रति अपना लेगाव अनुभव करने लगता है, उस भाव को देश प्रेम के अंतर्गत परिगणित किया जाता है। देश प्रेम में देश की रक्षा और देश के विकास को महत्व दिए जाने के साथ देश के प्रति पूज्य भाव का संचार भी सन्निहित होता है। जब तक व्यक्ति देश को अपना आराध्य नहीं बनाता, तब तक देश के प्रति समर्पण का भाव भी उसमें जाग्रत नहीं होता।

प्रश्न (i)  उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए ?

उत्तर : गद्यांश का उचित शीर्षक 'देशप्रेम का अर्थ' है।

प्रश्न (ii) देश के प्रति समर्पण का भाव कब जाग्रत होता है?

उत्तर : देश के प्रति प्रेम तब जागता है, जब देश के प्रति समर्पण का भाव जग जाता है। जब व्यक्ति देश को अपना आराध्य बना लेता है, जब तक व्यक्ति अपने देश को अपना आराध्य नहीं बनाता, तब तक उसका देश के प्रति समर्पण भाव नहीं जाग्रत होता।

प्रश्न (iii) उपर्युक्त गद्याश का सारांश लिखिए।​

उत्तर : उपर्युक्त गद्यांश का सारांश इस प्रकार होगा :

प्रेम स्वयं के विस्तार का ही रूप है। प्रेम अपने परिवार, समाज और देश सभी से होना चाहिए। देश के प्रति प्रेम करने के लिए देश को अपने आराध्य बना लेना चाहिए, तभी देश के प्रति समर्पण का भाव जाग्रत होता है।

#SPJ3

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कुछ और जानें :

https://brainly.in/question/42373746

दिए गए गद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर दीजिये।

https://brainly.in/question/31701850

निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए !

पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मी पर अखंड विश्वास था !वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या , स्वर्ग में भी लक्ष्मी जी का राज्य है उनका यह कहना यथार्थ ही था न्याय और नीती सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं इन्हें वह जैसी चाहती है नचाती है।

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