3. निम्नलिखित शिक्षाओं के आधार पर एक-एक कहानी लिखिए-
(क) मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा होता है।
(ख)लालच का फल अच्छा नहीं होता।
please give both answers
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Answer:
Explanation:
Explanation:(1) एक राजा था । वह बहुत दयालू था । उसे पशु-पक्षी से लगाव था । राजा एक पालतू बंदर को बहुत पसंद करता था । जिसे वह अपने साथ लेकर घूमता था । महल के सब लोग बन्दर को इज़्ज़त और प्यार देते थे । अच्छा खाना खा बन्दर मोटा और घमंडी हो गया था । एक दिन राजा अपने बन्दर को लेकर बगीचे में सैर के लिए चल पड़ा । बीच में थकने के बाद राजा आराम करने पेड़ के नीचे लेटा और उसने बन्दर्को कहा कि कोई उसे उठाए नहीं ,वे सोना चाहते हैं । वह राजा के सिरहाने बैठकर पंखा झलने लगा । तभी उसने देखा कि एक मक्खी कभी राजा के माथे पर बैठती तो कभी कान पर ऐसे वह राजा को तंग कर रही थी । बन्दर को राजा का आदेश याद आया और उसने मक्खी को मारने के इधर-उधर देखा तो उसके हाथ राजा की तलवार आ गई । उसने आव देखा न ताव तलवार के एक वार से उस मक्खी को मार दिया । जब तक उसे समझ में आता कि उसने क्या किया है, उसने देखा कि राजा का सिर धड़ से अलग हो गया था । इस प्रकार मूर्ख मित्र के कारण राजा को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा । मूर्ख मित्र हमें गलत सुझाव देकर अनजाने में गलत रास्ते की ओर ले जा सकता है । एक समझदार शत्रु से हम फिर भी चौकन्ने रहते हैं । इसलिए वह हमें इतनी हानि नहीं पहुँचा सकते हैं , मूर्ख मित्र की बातों में आकर हम गलत सलाह को भी सही मानकर बड़ी गलती कर सकते हैं जिसका पछतावा हमें जीवन भर रह सकता है ।
ऐसे ही एक और कहानी भी यही कहावत सिद्ध करती है । एक गाँव में एक लकड़हारा रहता था । उसका बारह साल का एक बेटा था । एक दिन वह लकड़हारा शाम को घर आकर थक कर लेट गया । खूब काम करने के कारण वह बहुत थका हुआ था । थकावट के कारण उसे नींद आ रही थी । तभी एक मच्छर उसकी नाक पर आ बैठा और उसे तंग करने लगा । लकड़हारे ने जोर से आवाज लगाकर अपने बेटे से उस मच्छर को मारने को कहा । बेटा मूर्ख था। अंदर जाकर कुल्हाड़ी ले आया । जैसे ही मच्छर दोबारा लकड़हारे की नाक पर बैठा, तो बेटे ने जोर से कुल्हाड़ी उठाकर मच्छर पर दे मारी । मच्छर तो उड़ गया पर लकड़हारा जो गहरी नींद में सो रहा था, उसका मुँह शरीर से अलग हो गया । बेटा यह देखकर फूट-फूट कर रोने लगा //
(2) किसी गांव में एक गड़रिया रहता था। वह लालची स्वभाव का था, हमेशा यही सोचा करता था कि किस प्रकार वह गांव में सबसे अमीर हो जाये। उसके पास कुछ बकरियां और उनके बच्चे थे। जो उसकी जीविका के साधन थे।
एक बार वह गांव से दूर जंगल के पास पहाड़ी पर अपनी बकरियों को चराने ले गया। अच्छी घास ढूँढने के चक्कर में आज वो एक नए रास्ते पर निकल पड़ा। अभी वह कुछ ही दूर आगे बढ़ा था कि तभी अचानक तेज बारिश होने लगी और तूफानी हवाएं चलने लगीं। तूफान से बचने के लिए गड़रिया कोई सुरक्षित स्थान ढूँढने लगा। उसे कुछ ऊँचाई पर एक गुफा दिखाई दी। गड़रिया बकरियों को वहीँ बाँध उस जगह का जायजा लेने पहुंचा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गयीं। वहां बहुत सारी जंगली भेड़ें मौजूद थीं।
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मोटी- तगड़ी भेड़ों को देखकर गड़रिये को लालच आ गया। उसने सोचा कि अगर ये भेड़ें मेरी हो जाएं तो मैं गांव में सबसे अमीर हो जाऊंगा। इतनी अच्छी और इतनी ज्यादा भेड़ें तो आस-पास के कई गाँवों में किसी के पास नहीं हैं।
उसने मन ही मन सोचा कि मौका अच्छा है मैं कुछ ही देर में इन्हें बहला-फुसलाकर अपना बना लूंगा। फिर इन्हें साथ लेकर गांव चला जाऊंगा।
यही सोचते हुए वह वापस नीचे उतरा। बारिश में भीगती अपनी दुबली-पतली कमजोर बकरियों को देखकर उसने सोचा कि अब जब मेरे पास इतनी सारी हट्टी-कट्टी भेडें हैं तो मुझे इन बकरियों की क्या ज़रुरत उसने फ़ौरन बकरियों को खोल दिया और बारिश में भीगने की परवाह किये बगैर कुछ रस्सियों की मदद से घास का एक बड़ा गट्ठर तैयार कर लिया.
गट्ठर लेकर वह एक बार फिर गुफा में पहुंचा और काफी देर तक उन भेड़ों को अपने हाथ से हरी-हरी घास खिलाता रहा। जब तूफान थम गया, तो वह बाहर निकला। उसने देखा कि उसकी सारी बकरियां उस स्थान से कहीं और जा चुकी थीं।
गड़ेरिये को इन बकरियों के जाने का कोई अफ़सोस नहीं था, बल्कि वह खुश था कि आज उसे मुफ्त में एक साथ इतनी अच्छी भेडें मिल गयी हैं। यही सोचते-सोचते वह वापस गुफा की ओर मुड़ा लेकिन ये क्या… बारिश थमते ही भेडें वहां से निकल कर दूसरी तरफ जान लगीं। वह तेजी से दौड़कर उनके पास पहुंचा और उन्हें अपने साथ ले जाने की कोशिश करने लगा। पर भेडें बहुत थीं, वह अकेला उन्हें नियंत्रित नहीं कर सकता था… कुछ ही देर में सारी भेडें उसकी आँखों से ओझल हो गयीं।
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यह सब देख गड़रिये को गुस्सा आ गया। उसने चिल्लाकर बोला –
तुम्हारे लिए मैंने अपनी बकरियों को बारिश में बाहर छोड़ दिया। इतनी मेहनत से घास काट कर खिलाई… और तुम सब मुझे छोड़ कर चली गयी… सचमुच कितनी स्वार्थी हो तुम सब।
गड़रिया बदहवास होकर वहीं बैठ गया। गुस्सा शांत होने पर उसे समझ आ गया कि दरअसल स्वार्थी वो भेडें नहीं बल्कि वो खुद है, जिसने भेड़ों की लालच में आकर अपनी बकरियां भी खो दीं।
कहानी से सीख : लोभ का फल नामक यह कहानी हमें सिखाती है कि जो व्यक्ति स्वार्थ और लोभ में फंसकर अपनों का साथ छोड़ता है, उसका कोई अपना नहीं बनता और अंत में उसे पछताना ही पड़ता है।