3. 'प्रेम या अहिंसा में ही भगवान होते हैं।' - कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
Answers
Answer:
जैन संत अरुण मुनि ने कहा कि प्रेम भावना ही अहिंसा की आत्मा है। विचार भले ही एक दूसरे से भिन्न हो मगर प्रेम भाव सबसे रखो।
वे बृहस्पतिवार को जैन स्थानक शहर में धर्मसभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि अगर जीवन में कायरती लानी है तो पाप कर्म करने से कायर बन जाओगे। जब मन से सभी प्रकार का भय निकल जाएगा तो मनुष्य पाप कर्म छोड़कर पुण्य कर्म की ओर बढ़ेगा। धर्म से बड़ी कोई चीज नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंसा ही दुखों का कारण है। काया से इतनी हिंसा नहीं होती जितनी अधिक हिंसा मन व वाणी से कर लेते हैं। महावीर भगवान ने पहला पाठ प्रेम भाव का ही बताया है। एक दूसरे के प्रति प्रेम की भावना हो। किसी के द्वारा अपमान करने पर उससे बदला लेने की बात सोचने मात्र से ही हिंसा का पार्ट लग जाता है।
उन्होंने कहा कि अहिंसा धर्म सारें संसार का धर्म है। वह केवल जैन समाज की बपौती नहीं। सभी धर्म हिंसा न करने की बात कहते हैं। लेकिन आज का व्यक्ति कठोर हो गया है। भाई तो है पर भाईचारा समाप्त हो गया है। फिर भी दिखावा मात्र के लिये उनमें प्रेम भाव होता है। भले ही अंदर कालिख क्यों न भरी पड़ी हो। इससे पूर्व आगम मुनि ने धर्मसभा में विचार रखे। धर्मसभा में जयप्रकाश जैन, सोमपाल, राजीव जैन, अतुल जैन, हंस कुमार जैन, कालू जैन, शेलबाला, इंद्राणी, अनुराधा, मोनिका, पूनम आदि उपस्थित रहें।