Hindi, asked by harshit8698, 9 months ago

3. 'प्रार्थना' पाठ का मूलपान अपने शब्दों में लिखिए। कृपया जल्दी बताए । धन्यवाद ।​

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Answered by Anonymous
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प्रार्थना एक धार्मिक क्रिया है जो ब्रह्माण्ड की किसी 'महान शक्ति' से सम्बन्ध जोड़ने की कोशिश करती है। प्रार्थना व्यक्तिगत हो सकती है और सामूहिक भी। इसमें शब्दों (मंत्र, गीत आदि) का प्रयोग हो सकता है या प्रार्थना मौन भी हो सकती है।

प्रार्थना में शरीर, मन व वाणी तीनों अपने आराध्य देव की सेवा में एक रूप होते हैं तो वह सीधी परमात्मा के पास पहुँचती है। हृदय की आकुल पुकार है-- प्रार्थना ।सच्चे मन से की गई प्रार्थना चमत्कारिक होती है ।भक्तप्रह्लाद की प्रार्थना ही थी जो हर संकट में उसकी रक्षा करती रही ।ध्रुव ने प्रार्थना की शक्ति से ही वन में भगवान् के साक्षात दर्शन किए ।

प्रार्थना के संबंध में एल. क्राफार्ड ने कहा था:-‘‘ प्रार्थना परिष्कार एवं परिमार्जन की उत्तम प्रक्रिया है।’’

प्रार्थना के संबंध में आदि शक्ति ने कहा है:-प्रार्थना निवेदन करके उर्जा प्राप्त करने की शक्ति है और अपने इष्ट अथवा विद्या के प्रधान देव से सीधा संवाद है। प्रार्थना लौकिक व अलौकिक समस्या का समाधान है।

मुझे इस विषय में कोई शंका नहीं है कि विकार रूपी मलों की शु़िद्ध के लिए हार्दिक उपासना एक रामबाण औषधि है। (महात्मा गाँधी जीवनी से संग्रहीत)।

मैने यह अनुभव किया है कि जब हम सारी आशा छोडकर बैठ जाते हैं, हमारे दोनो हाथ टिक जाते हैं, तब कहीं न कहीं से मदद आ पहुंचती है। स्तुति, उपासना, प्रार्थना वहम नहीं है, बल्कि हमारा खाना पीना, चलना बैठना जितना सच है, उससे भी अधिक सच यह चीज है। यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं है कि यही सच है और सब झूठ है। ऐसी उपासना, ऐसी प्रार्थना निरा वाणी विलास नहीं होती उसका मूल कंठ नहीं हृदय है। (महात्मा गाँधी जीवनी से संग्रहीत)।

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