Hindi, asked by reetee, 11 months ago

3 poems on vasant writu in hindi with title and writer's name​

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Answered by sanray23
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Answer:

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ।

       सुनो बात मेरी -

       अनोखी हवा हूँ।

       बड़ी बावली हूँ,

       बड़ी मस्तमौला

       नहीं कुछ फिकर है,

       बड़ी ही निडर हूँ।

       जिधर चाहती हूँ,

       उधर घूमती हूँ,

       मुसाफिर अजब हूँ।

न घर-बार मेरा,

न उद्देश्य मेरा,

न इच्छा किसी की,

न आशा किसी की,

न प्रेमी न दुश्मन,

जिधर चाहती हूँ

उधर घूमती हूँ।

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ!

       जहाँ से चली मैं

       जहाँ को गई मैं -

       शहर, गाँव, बस्ती,

       नदी, रेत, निर्जन,

       हरे खेत, पोखर,

       झुलाती चली मैं।

       झुमाती चली मैं!

       हवा हूँ, हवा मै

       बसंती हवा हूँ।

चढ़ी पेड़ महुआ,

थपाथप मचाया;

गिरी धम्म से फिर,

चढ़ी आम ऊपर,

उसे भी झकोरा,

किया कान में 'कू',

उतरकर भगी मैं,

हरे खेत पहुँची -

वहाँ, गेंहुँओं में

लहर खूब मारी।

       पहर दो पहर क्या,

       अनेकों पहर तक

       इसी में रही मैं!

       खड़ी देख अलसी

       लिए शीश कलसी,

       मुझे खूब सूझी -

       हिलाया-झुलाया

       गिरी पर न कलसी!

       इसी हार को पा,

       हिलाई न सरसों,

       झुलाई न सरसों,

       हवा हूँ, हवा मैं

       बसंती हवा हूँ!

मुझे देखते ही

अरहरी लजाई,

मनाया-बनाया,

न मानी, न मानी;

उसे भी न छोड़ा -

पथिक आ रहा था,

उसी पर ढकेला;

हँसी ज़ोर से मैं,

हँसी सब दिशाएँ,

हँसे लहलहाते

हरे खेत सारे,

हँसी चमचमाती

भरी धूप प्यारी;

बसंती हवा में

हँसी सृष्टि सारी!

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ!

कवि :- केदारनाथ अग्रवाल

रंग-बिरंगी खिली-अधखिली

किसिम-किसिम की गंधों-स्वादों वाली ये मंजरियां

तरुण आम की डाल-डाल टहनी-टहनी पर

झूम रही हैं...

चूम रही हैं--

कुसुमाकर को! ऋतुओं के राजाधिराज को !!

इनकी इठलाहट अर्पित है छुई-मुई की लोच-लाज को !!

तरुण आम की ये मंजरियाँ...

उद्धित जग की ये किन्नरियाँ

अपने ही कोमल-कच्चे वृन्तों की मनहर सन्धि भंगिमा

अनुपल इनमें भरती जाती

ललित लास्य की लोल लहरियाँ !!

तरुण आम की ये मंजरियाँ !!

रंग-बिरंगी खिली-अधखिली...

कवि :- नागार्जुन

उस फैली हरियाली में,

कौन अकेली खेल रही मा!

वह अपनी वय-बाली में?

सजा हृदय की थाली में--

क्रीड़ा, कौतूहल, कोमलता,

मोद, मधुरिमा, हास, विलास,

लीला, विस्मय, अस्फुटता, भय,

स्नेह, पुलक, सुख, सरल-हुलास!

कवि :- सुमित्रानंदन पंत


reetee: poem ka title?
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