Hindi, asked by dodiyagovind81, 18 hours ago

3. रबड़ की बनी बरसाती पहनने के क्या लाभ हैं?​

Answers

Answered by nitusuraj89
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Explanation:

भारत में सात लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर रबड़ बागान हैं। पर, रबड़ की गिरती कीमतों, कम लाभ और श्रम की अत्यधिक लागत के चलते यह उद्योग बुरे दौर से गुजर रहा है। यही कारण है कि रबड़ बागानों के प्रबंधन और रणनीति में सुधार की आवश्यकता महसूस की जा रही है। रबड़ का पेड़, जिसका वानस्पतिक नाम हैविया ब्राजीलिएन्सिस है, भारत में केरल और उत्तर-पूर्वी राज्यों में प्रमुख तौर पर उगाया जाता है। रबड़ के पेड़ में चीरा लगाकर मिलने वाले लेटेक्स का उपयोग टायर उत्पादन, सर्जिकल ग्लोव्स और कान्डोम जैसे उत्पाद बनाने में किया जाता है।

बेहतरीन उत्पादन वाले रबड़ के पेड़ों की उत्पादन क्षमता भी करीब 25 साल बाद कम होने लगती है और अंततः वे गिर जाते हैं। उनके स्थान पर रबड़ के पेड़ों का रोपण किया जाता है। लेकिन, बड़े पैमाने पर नष्ट होने वाले इन रबड़ के पेड़ों की लकड़ी का उपयोग पैकिंग जैसे कुछेक कार्यों को छोड़कर नहीं हो पाता। खराब गुणवत्ता के कारण इस लकड़ी से फर्नीचर नहीं बनाए जा सकते। लेकिन, काष्ठ विज्ञान और इससे संबंधित प्रौद्योगिकी में हो रहे वैज्ञानिक सुधारों से फिंगर ज्वाइंटिंग तकनीक और संरक्षित अनुप्रयोग जैसी नयी तकनीकें विकसित हुई हैं, जिनकी मदद से रबड़ के पेड़ों के नये उपयोगों के बारे में पता चला है। रबड़वुड फर्नीचर का निर्माण इनमें से एक है। इन दिनों बाजार में खूबसूरत और कम कीमत वाले रबड़वुड फर्नीचर काफी प्रचलन में हैं।

मलेशिया जैसे रबड़ उत्पादक देशों में रबड़ के ऐसे पेड़ विकसित करने के प्रयास किए गए हैं, जिनका उपयोग शुरू में लेटेक्स उत्पादन के लिए किया जाता है और जब इन पेड़ों की लेटेक्स उत्पादन क्षमता कम हो जाती है तो गिरे हुए पेड़ों की लकड़ी का उपयोग अन्य कामों में करते हैं। इस तरह रबड़ के पेड़ों से दोहरा लाभ और आमदनी प्राप्त की जा सकती है। भारत के रबड़ सुधार कार्यक्रमों में लेटेक्स उत्पादन में वृद्धि पर तो जोर दिया जाता है, पर रबड़ के पेड़ की लकड़ी की गुणवत्ता में सुधार की ओर ध्यान नहीं दिया जाता। इस स्थिति में अब बदलाव हो सकता है। कई पूर्व शोधों में भी यह बात साबित हो चुकी है कि सेलेक्टिव ब्रीडिंग और संकरण कार्यक्रमों के जरिये उष्ण कटिबंधीय पेड़ों की लकड़ी के गुणों में सुधार किया जा सकता है।

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