3. सूरदास जी की काव्यगत विशेषताओं पर दस पंक्तियाँ लिखो |
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सूर के कृष्ण प्रेम और माधुर्य प्रतिमूर्ति है। जिसकी अभिव्यक्ति बड़ी ही स्वाभाविक और सजीव रूप में हुई है। 3. जो कोमलकांत पदावली, भावानुकूल शब्द-चयन, सार्थक अलंकार-योजना, धारावाही प्रवाह, संगीतात्मकता एवं सजीवता सूर की भाषा में है, उसे देखकर तो यही कहना पड़ता है कि सूर ने ही सर्व प्रथम ब्रजभाषा को साहित्यिक रूप दिया है।
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सूरदास जी ने अपने जीवन मे कई प्रकार की रचनाएं की है जिनमे कुछ विशेषताएं ऐसी रही है जिस वजह से वे काफी प्रसिद्ध हुए और इतना ही नहीं उनकी कविताओं को आज भी पढ़ा जाता है।
सूरदास जी ने अपनी कविताओं के माध्यम से यह भी बताया है की मनुष्य को भगवान श्रीकृष्ण का अनुग्रह करना चाहिए, इससे मनुष्य को सदबृद्वि मिलती है। वही उन्होने अटल भक्ति कर्मभेद को जातिभेद, ज्ञान, योग से भी श्रेष्ठ बताया है। सूरदास जी ने अपने जीवन मे वात्सल्य, श्रृंगार और शान्त रसों को मुख्य रूप से अपनाया है और लोगों को भी ऐसे ही रस अपनाने की सलाह दी है। सूरदास जी ने अपनी रचनाओं मे कृष्ण के बाल्य-रूप का अति सुंदर, सरस, सजीव और मनोवैज्ञानिक वर्णन किया है जो की कृष्ण वास्तविकता की प्रामाणिकता पर प्रकाश डालते है। सूरदास जी ने बालकों की चपलता, स्पर्धा, अभिलाषा, आकांक्षा का वर्णन करने में विश्व व्यापी बाल-स्वरूप इत्यादि का भी काफी अच्छा चित्रण किया है।