3) साधु-संतो को राग विद्या की जानकारी न होने का कारण मौत की सजा दिया जाना चा उचित है १
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साधु-संतो को राग विद्या की जानकारी न होने का कारण मौत की सजा दिया जाना उचित है १
साधु-संतो को राग विद्या की जानकारी न होने का कारण उन्हें मौत की सजा देना उचित नहीं है | साधु-संत ईश्वर की आराधना करने वाले भक्त होते है | सभी अपने-अपने से पूजा-आराधना करते है | साधु-संतो का उद्देश्य किसी को प्रस्सन करना नहीं होता है | उनका काम अपने लिए भक्ति करना है | इसलिए यह उचित नहीं है कि उन्हें राग विद्या आनी चाहिए ,और उन्हें इसके लिए मौत की सजा नहीं देनी चाहिए |
Answer:
साधु-संत दीन-दुनिया से विरक्त ईश्वर आराधना में लीन रहने वाले लोग होते हैं। वे अपने साथी साधु-संतों से सुने सुनाए भजन-कीर्तन अपने ढंग से गाते हैं। उन्हें राग, छंद और संगीत का समुचित ज्ञान नहीं होता। भजन भी वे अपनी आत्म संतुष्टि और ईश्वर आराधना के लिए गाते हैं। उनका उद्देश्य उसे राग में गा कर किसी को प्रसन्न करना नहीं होता। आगरा शहर में बिना सुर-ताल की परवाह किए हुए और बादशाह के कानून से अनभिज्ञ ये साधु गाते हुए जा रहे थे। इन्हें इस जुर्म में पकड़ लिया गया था कि वे आगरा की सीमा में गाते हुए जा रहे हैं। अकबर के मशहूर रागी तानसेन ने यह नियम बनवा दिया था कि जो आदमी राग विद्या में उसकी बराबरी न कर सके वह आगरा की सीमा में न गाए। यदि गाए तो उसे मौत की सजा दी जाए।
अतः इन्हें मौत की सजा दे दी गई। इस तरह साधुओं को मौत की सजा देना उनके साथ बिलकुल अन्याय है। इस तरह के कानून से तानसेन के अभिमान की बू आती है।