Hindi, asked by mukeshmangla496, 4 months ago

3) श्लोकात् एकं अव्ययपदं चित्वा लिखत।​

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Answered by Sasmit257
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  • बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है
  • बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है
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  • बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है
  • बहुत से मनुष्य सोच सोच कर कि हमें कभी सफलता नहीं मिलेगी, तब हमारे विपरीत अपनी सफलता को अपने हाथों पीछे धकेल देते हैं| उनका मानसिक भाव सफलता और विजय के अनुकूल बनता ही नहीं तो सफलता और विजय कहां? यदि हमारा मन संका और निराशा से भरा है तो हमारे कामों का परिचय भी निराशाजनक ही होगा, क्योंकि सफलता की, विजय की, उन्नति को कुंजी तो अभी चल श्रद्धा ही है

vaishnaviprakash436: hi sasmit bhai
mukeshmangla496: this is not the ans
mukeshmangla496: if you don't know please don't write
mukeshmangla496: we have to write the aavya
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