Hindi, asked by kumarsatish00921, 6 months ago

3.श्रीकृष्ण की अग्रपूजा का शिशुपाल ने किस तरह विरोध किया ?

1) यह कहकर कि श्रीकृष्ण जैसे मामूली व्यक्ति को इस प्रकार गौरवान्वित नहीं किया जाना चाहिए
2) जिस व्यक्ति ने कुचक्र रचकर जरासंध को मरवा डाला उस व्यक्ति की अग्रपूजा किया जाना उचित नहीं है
3)
उपर्युक्त दोनों ही सही है

Answers

Answered by mk610112manoj
1

Answer:

1) यह कहकर कि श्रीकृष्ण जैसे मामूली व्यक्ति को इस प्रकार गौरवान्वित नहीं किया जाना चाहिए

2) जिस व्यक्ति ने कुचक्र रचकर जरासंध को मरवा डाला उस व्यक्ति की अग्रपूजा किया जाना उचित नहीं है

OR

उपर्युक्त दोनों ही सही है

Explanation:

सभी द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की जय-जयकार करने लगते हैं। द्वार से श्रीकृष्ण और बलराम भीतर आते हैं। सभी खड़े होकर उन्हें प्रणाम करते हैं लेकिन शिशुपाल, शकुनि और दुर्योधन बैठे रहते हैं।सभी पंडित-पुरोहित श्रीकृष्ण और बलराम के पास आकर खड़े हो जाते हैं। तब एक परोहित उन्हें सिंघासन की ओर चलने का संकेत करते हैं। श्रीकृष्ण सभी के जय-जयकार और फूलों से स्वागत के बीच सभी का अभिवादन स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते हैं। तभी बीच में ही शिशुपाल का क्रोध फूट पड़ता है और वह चीखकर दोनों हाथ उठाकर कहता है- ठहरो।

सभी यह सुनकर स्तंब्ध हो जाते हैं। हाथ में पूजा की थाली लिए खड़े पांडव उसकी ओर देखते हैं। भीष्म, द्रोण और विदुर भी यह देखकर सोच में पड़ जाते हैं। श्रीकृष्ण भी उसे देखकर मुस्कुराकर आगे बढ़ने लगते हैं तब शिशुपाल चीखता है- मैं चेदिराज शिशुपाल आप सभी के इस निर्णय का विरोध करता हूं। श्रीकृष्‍ण मुस्कुराते रहते हैं और आगे बढ़ते जाते हैं। तब शिशुपाल कहता है- मैं नहीं मानता श्रीकृष्ण को अग्रपूजा का अधिकारी, नहीं मानता।

इस आदमी में ऐसा कोई गुण नहीं है जो इसे महापुरुष सिद्ध करता हो, अरे ये तो भगोड़ा है भगोड़ा। सम्राट जरासंध को युद्ध में ये पीठ दिखाकर भागा था।...यह सुनकर राजा द्रुपद खड़े होकर कहते हैं- नहीं शिशुपाल नहीं। तब शिशुपाल कहता है- आप चुप रहिये महाराज द्रुपद...आप लोगों ने इसे व्यर्थ ही महान बना रखा है। इसे महानता का पद दे रखा है।...श्रीकृष्ण कुछ नहीं बोलते हैं और आगे बढ़ते हुए उसके सामने से गुजरने लगते हैं...तब शिशुपाल कहता है- परंतु ये तो चोर है चोर।

यह सुनकर बलराम शिशुपाल की ओर दौड़ने लगते हैं तो श्रीकृष्ण पीछे से उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लेते और धीरज धरने का कहते हैं और पुन: मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते हैं। पीछे से शिशुपाल कहता है- स्त्री लोलुप है ये, कामी है। अधर्मी है अधर्मी। अरे! इसके पिता का कोई ठिकाना नहीं। कभी कहता है कि मैं नंद ग्वाले का पुत्र हूं और कभी कहता है कि वासुदेव मेरा पिता है। अरे इसे ठीक तरीके से अपने बाप का नाम तक याद नहीं, झूठा है झूठा।

please mark as brainlinlist.

Similar questions