3. शक्ति का केन्द्रीकरण (प्रभाकर श्रोत्रिय) निबंध का सारांश अपने शब्दों में लिखिए
Answers
Answer:
I DONT NO THE Answer Bro
प्रभाकर श्रोत्रिय निबंध
Explanation:
डॉ॰ प्रभाकर श्रोत्रिय (जन्म १९ दिसम्बर १९३८) हिन्दी साहित्यकार, आलोचक तथा नाटककार हैं। हिंदी आलोचना में प्रभाकर श्रोत्रिय एक महत्वपूर्ण नाम है पर आलोचना से परे भी साहित्य में उनका प्रमुख योगदान रहा है, खासकर नाटकों के क्षेत्र में। उन्होंने कम नाटक लिखे पर जो भी लिखे उसने हिंदी नाटकों को नई दिशा दी। पूर्व में मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं 'साक्षात्कार' व 'अक्षरा' के संपादक रहे हैं एवं विगत सात वर्षों से भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं 'वागर्थ' के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद पर भी कार्य कर चुके हैं। वे अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य हैं। निधन- 15 सितंबर, 2016. सर गंगाराम अस्पताल, नई दिल्ली
साहित्य के क्षेत्र में प्रभाकर श्रोत्रिय बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। साहित्य की लगभग सभी विधाओं में इन्होंने सफलतापूर्वक लेखन कार्य किया है। आलोचना, निबंध और नाटक के क्षेत्र में इनका योगदान विशेष उल्लेखनीय है।
आलोचना- 'सुमनः मनुष्य और स्रष्टा', 'प्रसाद को साहित्यः प्रेमतात्विक दृष्टि', 'कविता की तीसरी आँख', 'संवाद', 'कालयात्री है कविता', 'रचना एक यातना है', 'अतीत के हंसः मैथिलीशरण गुप्त', जयशंकर प्रसाद की प्रासंगिकता'. 'मेघदूतः एक अंतयात्रा, 'शमशेर बहादुर सिंह', 'मैं चलूँ कीर्ति-सी आगे-आगे', 'हिन्दी - कल आज और कल'[1]
निबंध-'हिंदीः दशा और दिशा', 'सौंदर्य का तात्पर्य', 'समय का विवेक', 'समय समाज साहित्य'
नाटक- 'इला', 'साँच कहूँ तो. . .', 'फिर से जहाँपनाह'।
प्रमुख संपादित पुस्तकें- 'हिंदी कविता की प्रगतिशील भूमिका', 'सूरदासः भक्ति कविता का एक उत्सव प्रेमचंदः आज', 'रामविलास शर्मा- व्यक्ति और कवि', 'धर्मवीर भारतीः व्यक्ति और कवि', 'समय मैं कविता', 'भारतीय श्रेष्ठ एकाकी (दो खंड), कबीर दासः विविध आयाम, इक्कीसवीं शती का भविष्य नाटक 'इला' के मराठी एवं बांग्ला अनुवाद तथा 'कविता की तीसरी आँख' का अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित।
इसके अलावा साहित्यिक जगत उन्हें प्रखर सम्पादक के रूप में भी जानता है। वे ‘वागर्थ’, साक्षात्कार‘ और ‘अक्षरा’ जैसी प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं के लंबे समय तक संपादक रहे हैं। भारतीय ज्ञानपीठ की पत्रिका ‘नया ज्ञानोदय’ के वे लंबे समय तक संपादक रहे हैं।