Hindi, asked by mittalvanshik786, 1 month ago

3 दोपहरी कविता में एक ग्रामीण की दिनचर्या क्या बताई गई है?​

Answers

Answered by cutepixelarmygirl
2

Answer:

Hello I'm kriti priya please mark me brainleast

Answered by phoolwari1999
1

Answer:

गरमी की दोपहरी में

तपे हुए नभ के नीचे

काली सड़कें तारकोल की

अँगारे-सी जली पड़ी थीं

छाँह जली थी पेड़ों की भी

पत्ते झुलस गए थे

नँगे-नँगे दीघर्काय, कँकालों से वृक्ष खड़े थे

हों अकाल के ज्यों अवतार

एक अकेला ताँगा था दूरी पर

कोचवान की काली सी चाबुक के बल पर

वो बढ़ता था

घूम-घूम ज्यों बलखाती थी सर्प सरीखी

बेदर्दी से पड़ती थी दुबले घोड़े की गरम

पीठ पर।

भाग रहा वह तारकोल की जली

अँगीठी के उपर से।

कभी एक ग्रामीण धरे कन्धे पर लाठी

सुख-दुख की मोटी सी गठरी

लिए पीठ पर

भारी जूते फटे हुए

जिन में से थी झाँक रही गाँवों की आत्मा

ज़िन्दा रहने के कठिन जतन में

पाँव बढ़ाए आगे जाता।

घर की खपरैलों के नीचे

चिड़ियाँ भी दो-चार चोंच खोल

उड़ती - छिपती थीं

खुले हुए आँगन में फैली

कड़ी धूप से।

बड़े घरों के श्वान पालतू

बाथरूम में पानी की हल्की ठण्डक में

नयन मून्द कर लेट गए थे।

कोई बाहर नहीं निकलता

साँझ समय तक

थप्पड़ खाने गर्म हवा के

सन्ध्या की भी चहल-पहल ओढ़े थी

गहरे सूने रँग की चादर

गरमी के मौसम में।

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