3. विद्वान् अपने रूप एवं नाम को त्यागकर किसमें मिल जाते हैं?
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विद्वान चित्त की चंचलता को त्याग कर आत्मस्वरूप को प्राप्त कर लेते हैं। जिसका चित्त स्थिर नहीं है, मन चंचल है, विषय वासनाओं में भटका हुआ है, वह आत्म स्वरूप को नहीं प्राप्त कर सकता। ... ऐसे में विद्वान जन चित्त की चंचलता और अर्थात अपने चंचल मन को त्याग कर अपने आत्मज्ञानी होकर आत्मस्वरुप को प्राप्त कर लेते हैं।
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