3-vaky ke parkaro ka arth ke aadhar par paribhasha
sahit varnan karo?
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Explanation:
'आकांक्षा' का अभिप्राय यह है कि शब्द यों ही रखे हुए न हों, वे मिलकर किसी एक तात्पर्य का बोध कराते हों। जैसे, कोई कहे—'मनुष्य चारपाई पुस्तक' तो यह वाक्य न होगा। जब वह कहेगा—'मनुष्य चारपाई पर पुस्तक पढ़ता है।' तब वाक्य होगा।
'योग्यता' का तात्पर्य यह है कि पदों के समूह से निकला हुआ अर्थ असंगत या असंभव न हो। जैसे, कोई कहे—'पानी में हाथ जल गया' तो यह वाक्य न होगा।
'आसक्ति' या 'सन्निधि' का मतलब है सामीप्य या निकटता। अर्थात् तात्पर्यबोध करानेवाले पदों के बीच देश या काल का व्यवधान न हो। जैसे, कोई यह न कहकर कि 'कुत्ता मारा, पानी पिया' यह कहे—'कुत्ता पिया मारा पानी' तो इसमें आसक्ति न होने से वाक्य न बनेगा; क्योंकि 'कुता' और 'मारा' के बीच 'पिया' शब्द का व्यवधान पड़ता है। इसी प्रकार यदि काई 'पानी' सबेरे कहे और 'पिया' शाम को कहे, तो इसमें काल संबंधी व्यवधान होगा। काव्य भेद का विषय मुख्यतः न्याय दर्शन के विवेचन से प्रारंभ होता है और यह मीमांसा और न्यायदर्शनों के अंतर्गत आता है।
दर्शनशास्त्रीय वाक्यों के ३ भेद- विधिवाक्य, अनुवाद वाक्य और अर्थवाद वाक्य किए गए हैं। इनमें अंतिम के चार भेद- स्तुति, निंदा, परकृति और पुराकल्प बताए गए हैं। वक्ता के अभिप्रेत अथवा वक्तव्य की अबाधकता वाक्य का मुख्य उद्देश्य माना गया है। इसी की पृष्ठ भूमि में सस्कृत वैयाकरणों ने वाक्यस्फोट की उद्भावना की है। वाक्यपदोयकार द्वारा स्फोटात्मक वाक्य की अखंड सत्ता स्वीकृत है।
भाषाबैज्ञानिकों की द्दष्टि में वाक्य संश्लेषणात्मक और विश्लेषणा- त्मक होते हैं।
शब्दाकृतिमूलक वाक्य के शब्दभेदानुसार चार भेद हैं—समासप्रधान, व्यासप्रधान, प्रत्ययप्रधान और विभक्तिप्रधान। इन्हीं के आधार पर भाषाओं का भी वर्गीकरण विद्वानों ने किया है।
आधुनिक व्याकरण की दृष्टि से वाक्य के तीन भेद होते हैं—सरल वाक्य, मिश्रित वाक्य और संयुक्त वाक्य।
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अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हैं –1-विधान वाचक वाक्य, 2- निषेधवाचक वाक्य, 3- प्रश्नवाचक वाक्य, 4- विस्म्यादिवाचक वाक्य, 5- आज्ञावाचक वाक्य, 6- इच्छावाचक वाक्य, 7-संकेतवाचक वाक्य, 8संदेहवाचक वाक्य। भारत एक देश है। श्रीराम के पिता का नाम दशरथ था। दशरथ अयोध्या के राजा थे।
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