3.यह घटना सन 1899 की है। उन दिनों कोलकाता में प्लेग फैला हुआ था। शायद ही कोई ऐसा घर बचा था जहाँ यह
बीमारी ना पहुँची हो । ऐसी विकट स्थिति में भी स्वामी विवेकानंदा और उनके कई शिष्य रोगियों की सेवा-सुश्रुषा में
जुटे हुए थे। वह अपने हाथों से नगर की गलियाँ और बाजार साफ करते थे और जिस घर में प्लेग का कोई मरीज़
होता था उन्हें दवा आदि देकर उनका उपचार करते थे। उसी दौरान कुछ लोग स्वामी विवेकानंदा के पास आए।
उनका मुखिया बोला,' स्वामी जी इस धरती पर पाप बहुत बढ़ गया है, इसलिए प्लेग की महामारी के रूप में भगवान
लोगों को दंड दे रहे हैं। पर आप ऐसे लोगों को बचाने का यत्न कर रहे हैं । ऐसा करके आप भगवान के कार्यों में बाधा
डाल रहे हैं। मंडली के मुखिया की कील जैसी बातें सुनकर स्वामी जी गंभीरता से बोले, 'सबसे पहले तो मैं आप सब
विद्वानों को नमस्कार करता हूँ।' इसके बाद स्वामी जी बोले, 'आप सब यह तो जानते ही होंगे कि मनुष्य इस जीवन में
अपने कर्मों के कारण कष्ट और सुख पाता है। ऐसे जो व्यक्ति कष्ट से पीड़ित हैं और तड़प रहा है यदि दूसरा व्यक्ति
उसके घाव पर मरहम लगा देता है, तो वह स्वयं ही पुण्य का अधिकारी बन जाता है। अब यदि आपके अनुसार प्लेग
से पीड़ित लोग पाप के भागी हैं तो हमारे कार्यकर्ता इन लोगों की मदद कर रहे हैं, तो हमारे जो कार्यकर्ता इन लोगों
की मदद कर रहे हैं वह तो पुण्य के भागी बन रहे हैं । बताइए कि इस संदर्भ में आपको क्या कहना है ? उनकी बात
सुनकर सभी लोग भैंचक्के रह गए और चुपचाप सिर झुका कर वहाँ से चले गए। 5. प्रश्न 3. कुछ लोगों की दृष्टि में विवेकानंदा जी द्वारा पीड़ितों की सेवा करना था- *
(1Point)
क. लोक कल्याण में बाधा
ख. लोक कल्याण में सहायता
ग.ईश्वर के कार्य में बाधा
घ. ईश्वर के कार्य में सहायता
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answer is (ga),,,ishwar k karyo me bandha
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