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SANSKRIT
1. राष्ट्र के योगदान में संस्कृत का महत्त्व” (100) शब्दों में लिख?
Answers
संस्कृत देवभाषा है। यह सभी भाषाओँ की जननी है। विश्व की समस्त भाषाएँ इसी के गर्भ से उद्भूत हुई है। वेदों की रचना इसी भाषा में होने के कारण इसे वैदिक भाषा भी कहते हैं। संस्कृत भाषा का प्रथम काव्य-ग्रन्थ ऋग्वेद को माना जाता है। ऋग्वेद को आदिग्रन्थ भी कहा जाता है। किसी भी भाषा के उद्भव के बाद इतनी दिव्या एवं अलौकिक कृति का सृजन कहीं दृष्टिगोचर नहीं होता है।ऋग्वेद की ऋचाओं में संस्कृत भाषा का लालित्य, व्याकरण, व्याकरण, छंद, सौंदर्य, अलंकर अद्भुत एवं आश्चर्यजनक है। दिव्य ज्ञान का यह विश्वकोश संस्कृत की समृद्धि का परिणाम है। यह भाषा अपनी दिव्य एवं दैवीय विशेषताओं के कारण आज भही उतनी ही प्रासंगिक एवं जीवंत है।
संस्कृत का तात्पर्य परिष्कृत, परिमार्जित,पूर्ण, एवं अलंकृत है। यह भाषा इन सभी विशेषताओं से पूर्ण है। यह भाषा अति परिष्कृत एवं परिमार्जित है। इस भाषा में भाषागत त्रुटियाँ नहीं मिलती हैं जबकि अन्य भाषाओँ के साथ ऐसा नहीं है। यह परिष्कृत होने के साथ-साथ अलंकृत भी है। अलंकर इसका सौंदर्य है। अतः संस्कृत को पूर्ण भाषा का दर्जा दिया गया है। यह अतिप्राचीन एवं आदि भाषा है। भाषा विज्ञानी इसे इंडो-इरानियन परिवार का सदस्य मानते है। इसकी प्राचीनता को ऋग्वेद के साथ जोड़ा जाता है। अन्य मूल भारतीय ग्रन्थ भी संस्कृत में ही लिखित है।